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बोझ कामचोर और बेकार कहा जाता है
पढ़ा लिखा भी हो तो गंवार कहा जाता है
इतना रसूख दिलाता है ये पैसा आदमी को
रुपये जेब में हो तो बंदा समझदार कहा जाता है
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बहुत तन्हा है तेरे बिन रात का मौसम
कभी तो लेके आ तू मुलाकात का मौसम
मेरी आँखों से बरसते हैं यादों के आंसू
अबके मेरे अश्कों से तर हे बरसात का मौसम
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बासे फूलों की तरह हवा के झोके से झर जाते हैं
हम रोज संवरते हैं और हर रोज बिखर जाते हैं
देर तक कोई कैसे करेगा भला तमन्ना मेरी
हम तो आँसू हैं सबकी आँखों से उतर जाते हैं
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-रुचि शाही