देख तेरे सारे अफ़साने रूठ गए- पूनम प्रकाश

क्या वाइज़ और क्या दीवाने रूठ गए।
जो भी आए थे समझाने रूठ गए।

शिद्दत मेरी प्यास की देखी ही थी और
दुनिया के सारे मैखाने रूठ गए।

बोझ नींद पर तो ख़्वाबों का था फिर भी
सर से जाने क्यों सिरहाने रूठ गए।

तभी ज़िंदगी उलझी-उलझी लगती है,
कब नसीब के ताने-बाने रूठ गये?

उससे भी तो पूछ ज़िन्दगी की लज़्ज़त
जिससे उसके रिज़्क़ के दाने रूठ गए।

मैंने बोला था मुझको उन्वान न कर,
देख तेरे सारे अफ़साने रूठ गए।

इस ज़िद्दी दिल को बहलाते बहलाते
ख़ुद से ही हम ख़ुद कब जाने रूठ गए।

टूट अगर जाते तो कोई बात न थी
हमसे तो यारों पैमाने रूठ गए।

-पूनम प्रकाश