हर पल लगे अबीर-सा- श्वेता सिन्हा

पी छवि नयन में आते ही
मुखड़ा हुआ अबीर-सा
फूटे हरसिंगार बदन पे
चुटकी केसर क्षीर-सा

पहन रंगीली चुनर रसीली
वन पलाश के इतराये
झर-झर झरते रंग ऋतु के
फगुनाहट मति भरमाये
खुशबू गाये गीत गुलाबी
भाव विभोर ऋतु पीर-सा

अमिया बौर की गंध मतायी
बड़ी नशीली भोर रे
कूहू विरह की पाती लिखे
छलकी अँखियाँ कोर रे
तन पिंजरा आकुल डोले
नाम जपे मन कीर-सा

इत्र की शीशी उलट गयी
चूडियाँ खनकी,साँसें हुई मृदंग
छू-छू उलझे लट से आकर
पगलाई हवा,पी बौराई भंग
रस प्रेम में भीगा-भीगा मन
पी ओर खिंचाये हीर-सा

कैसे होली खेलूँ प्रियतम
ना छूटे रंग प्रीत पक्का
हरा,गुलाबी, पीत,बसंती
लाल,बैंजनी सब कच्चा
तुम हो तो हर मौसम होली
हर पल लगे अबीर-सा

-श्वेता सिन्हा