नज़र भर कर तुम्हें देखूँ- स्नेहलता नीर

बनाया क़ल्ब को मैंने तुम्हारा आशियाना है
मेरा दिल हो गया उल्फ़त में दिलवर अब दिवाना है

हुई गुलज़ार धरती साँस महकाती पवन संदली
चले आओ सजन मौसम हुआ अब आशिकना है

नज़र के सामने आओ नज़र भर कर तुम्हें देखूँ
छुपा लूँ चश्म में तुमको पलक का शामियाना है

वसीला है मुझे तुमसे मरासिम छोड़ आई हूँ
तुम्हारे साथ ही अब घर सनम मुझको बसाना है

ज़माना इश्क से बेज़ार ज्यों कर दी ख़ता कोई
मगर उल्फ़त की राहों में क़दम फिर भी बढ़ाना है

मुसीबत लाख आ जाएं नहीं मुझको डिगा सकतीं
वफ़ा हर हाल में अब साथ साजन के निभाना है

भला मैं हार क्यों मानूँ जवाँ जब हौसले मेरे।
बुलंदी के फ़लक पर मुझको तो अब जगमगाना है

कभी तुम रूठ जाओगे मनाने के लिए तुमको
करूँ मनुहार पायल छन छनाछन छनछनाना है

मेरी तक़दीर सोई है किसी तदबीर से मुझको
मुसलसल कर्म करके नींद से उसको जगाना है

मिलें ग़म या ख़ुशी सब साथ मिलकरके सहेंगे हम
चलेगी जब तक साथ में जीवन बिताना है

ज़माना हँस पड़ेगा नीर से गर चश्म तर होगी
मुझे ये अश्क आँखों के ज़माने से छुपाना है

-स्नेहलता नीर