प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है- स्नेहलता नीर

वादे करके हर दल देता, रोज़ दिलासा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

किस पर करें यक़ीन, किसी को समझ नहीं आता।
बदलूँगा हालात कसम तो जो आता खाता।
मीठे बैन बोल हर नेता, बना बतासा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

भ्रम की मायानगरी में सब, कुछ आभासी है।
छलनाओं के शूल बिछे हैं, सुख बनवासी है।
सपनो का भारत सपनों में, झूठ तरासा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

छाते नेता सुख के घन बन, सूखा देते हैं ।
कुर्सी पाकर मज़े सभी जीवन के लेते हैं।
रहते ख़ुद संतृप्त आमजन, भूखा प्यासा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

नियम और कानून ताक रख, होते कर्म सभी।
संविधान-धाराओं का कब समझे मर्म सभी।
जंगलराज हुआ कायम, हर हाथ गड़ासा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

चलती हैअब उसकी जिसकी जेब बहुत भारी।
सदा गरीबों पर रहता है, ज़ुल्मो-सितम जारी।
उम्मीदों की किरण बिना मन, हुआ रुंआसा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

षड्यंत्रों का आज व्याध ने जाल बिछाया है।
झूठों को कर वरी सत्य को क़ैद कराया है।
लोकतंत्र भी आज लग रहा भ्रष्टतन्त्र सा है
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

बहे ‘नीर’ के हर धारे की, करुण कहानी है।
पत्थर दिल सरकार सदा से, रीत पुरानी है।
नहीं प्रजा की पूछ सियासत, खासमख़ासा है।
प्रजातंत्र के पथ पर भ्रम का, घना कुहासा है।

– स्नेहलता नीर