आधी आबादी के लिए ज्वलंत मुद्दा: महावारी स्वच्छता- स्नेहा किरण

आज थोडा शर्म त्याग कर एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर लिखने की इच्छा हो रही है। एक ऐसा विवादित विषय जिस पर कुछ लिखना शायद सभ्य समाज के लिए घृणित माना जाए। मगर आज समय की मांग है की इस पर मुखर होकर कुछ लिखा जाए और लिखने से भी ज्यादा जरुरी है की कुछ प्रभावकारी कदम उठाए जाए।
विषय है-महीनों के उन दिनों में स्वच्छता के मायने अर्थात महावारी स्वच्छता,
महिलाओं की शारीरिक स्वच्छ्ता इस देश के सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। सरकारें बदलने जितना ही महत्वपूर्ण, इस विषय से आपके मानसिक स्वास्थ्य का भी उतना ही गहरा रिश्ता है, जितने की आपके शारीरिक स्वास्थ्य का। इसे उपेक्षित रखना बहुत ही हास्यापद होगा हम सबके लिए। क्यों की कालांतर में इसके परिणाम भी तो हम सबको ही भुगतने होगे, इसलिए बेहतर होगा की समय रहते इसे विमर्श का मुद्दा बनाया जाए, इस पर समाज के हर वर्गीकृत लोगो के बीच खुली बहस हो। यही एकमात्र विकल्प है, इस वर्जित विषय को आम से आम और खास से खास महिला के बीच सहज बनाने का। इन सबमे मीडिया ग्रुप खासकर प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका बेहद आवश्यक है और समय की मांग भी। अखबारों की भूमिका किसी भी जन- जागृति के लिए मौजूदा दौर का सबसे सशक्त माध्यम है। इसलिए यहाँ किसी महत्वपूर्ण मुद्दे को जगह देना उसके निराकरण के रास्ते में अमली जामा पहनाने जैसा ही है।
पीरियड्स (महावारी) का हौआ इस देश के लिए बहुत पुराना है। ख़ासकर इसे औरतों से जोड़कर देखना किसी को भी सहजता का अहसास नहीं देता। औरतें किसी समारोह में शामिल हुई और उन्हें अगर सेनेटरी पैड्स बदलने की आवश्कयता महसुस हुई ये बात आज भी सभ्य समाज में हिक़ारत भरी नजरों से ही देखी जाती है। जबकि सेनेटरी पैड्स को इस्तेमाल करने के 4-5 घण्टे के दौरान ही बदलना बहुत जरुरी है वरना भीषण संक्रमण का खतरा हो सकता है। खासकर यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन, ये कितना खतरनाक है इसकी बस कल्पना से ही सिहरन होती है। खासकर गर्भावस्था के दौरान इसके संक्रमण से गर्भ का नुकसान भी हो सकता है।
21 वीं सदी आ चुकी है, समय आ चुका है की महावारी स्वच्छता जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विषयों पर गाँव-गाँव को एक व्यापक अभियान के तहत जोड़ा जाए। हर घर की बेटी-बहुओं की इसमें सहभागिता हो और गाँव-गाँव मुफ़्त सेनेटरी पैड्स बांटे जाए।
महावारी स्वच्छता केवल शारीरिक विकास के लिए ही नहीं अपितु मानसिक विकास के लिए भी उतना ही जरुरी है। कहा भी गया है की एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मष्तिस्क का भी निवास होता है और जब शारीरिक स्वच्छता का मसला महिलाओं से जुड़ा हो तो ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। विकास के तार औरतों के विकास से जुड़े होते हैं इसमे कोई संदेह नहीं है। औरत का स्वस्थ होना परिवार फिर उसके बाद समाज फिर राज्य और अंततोगत्वा देश के स्वस्थ होने की गारंटी है।
घरेलु औरतों, गाँव की औरतो को इस महावारी स्वच्छता के बारे में जागरूक करने का काम समाज का हैं, हमारा है। हमारे जैसे तथाकथित पढ़े-लिखे लोगों का है। आखिर शरीर की बुनियादी जरूरत को पूरा करने में किस बात की शर्म?
गाँव-देहात की औरतो के लिए यही कहना है की ये आपकी बुनियादी जरुरत हैं इसको शर्म के गहने में न गूथें, शरीर की जरुरत पर ध्यान दें और सबसे जरुरी मर्द या औरत होना नहीं बल्कि आपका सफ़ाई पसंद व्यक्तित्व होना है। वरना ऊँची शिक्षा-दीक्षा का क्या फ़ायदा? इस विकासशील देश के विकास की डोर आपके स्वास्थ्य से ही जुडी है। वक़्त आ गया है की हर औरत अपने महावारी के दौरान अपनी शारीरिक स्वच्छता को किसी भी नेशनल एजेंडे से कम न समझे।

-स्नेहा किरण,
अररिया (बिहार)