सफ़र करते रहे- आशुतोष असर

कौन कहता है कि अपने चश्म तर करते रहे
हम हमेशा फ़क्र अपने ज़ख्म पर करते रहे

मुंतजि़र थे मंजि़लो-रस्ते हमारे, उम्र भर
और हम औरों के हिस्से का सफर करते रहे

उनके अधरों में मेरी ख़ातिर कभी कुछ भी न था
ख़ामख़ा अधरों पे उनके हम अधर धरते रहे

चुन चुकीं थी मेरी अम्मा आपको मेरे लिए
इसलिए बस आप मेरे दिल में घर करते रहे

जब तलक चलती रही मन की असरजी आपके
आपकी होठों से हरदम फूल ही झरते रहे।
-आशुतोष असर