हम निडर होकर बढ़ेंगे- स्नेहलता नीर

हौसले हैं साथ तो हम, मंजिलें पाकर रहेंगे।
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

कर्म को पूजा समझकर, हम अहर्निश काम करते।
पर किसी गतिरोध-संकट से नहीं डरते, विचलते।
कर्म के बल पर स्वयं ही, भाग्य-फल अपना लिखेंगे
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

ले लिया संकल्प दृढ़ जब, फिर नहीं पीछे मुड़ेंगे।
बन पखेरू हम गगन में और भी ऊँचा उड़ेंगे।
पाँव धरती पर रखेंगे, भाल से अंबर छुएँगे।
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

आँधियों के हर थपेड़े को चुनौती दे रहे हैं।
चीरकर मझधार को हम नाँव अपनी खे रहे हैं।
हम सफलता की मिसालें, सामने सबके रखेंगे।
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

भारती की आन प्यारी, स्वाभिमानी शान प्यारी।
जान से बढ़कर हमें इस, देश की पहचान प्यारी।
हम सुदर्शन चक्र बनकर, प्राण दुश्मन के हरेंगे।
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

हो भले सत्ता अँधेरों, की कुटिल पहरा घनेरा।
हम उगाएँगे हमेशा, आस का स्वर्णिम सबेरा।
हम अटल विश्वास लेकर, जीत का परचम बनेंगे।
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

जूझना,जीना सिखाया, है हमें माता-पिता ने।
सत्य-निष्ठा और शुचिता, आचरण की संहिता ने।
हम सितारों की तरह यश, कीर्ति को उज्ज्वल करेंगे।
हों डगर में शूल फिर भी, हम निडर होकर बढ़ेंगे।

-स्नेहलता नीर