शरद पूर्णिमा: श्रीकृष्ण के महारास की रात, माँ लक्ष्मी का अवतरण दिवस

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा अथवा रास पूर्णिमा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार 30 अक्टूबर को पूर्णिमा की तिथि है।

सनातन धर्म में इस दिन कोजागरी व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत टपकता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर में रखने का विधान है।

शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस दिन ही माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी सभी के घर जाती हैं और उन पर कृपा बरसाती हैं।

इस बार शरद पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 30 अक्टूबर को शाम 7:45 बजे से होगा। शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रोदय 7:12 बजे होगा। वहीं शरद पूर्णिमा तिथि की समाप्ति 31 अक्टूबर को रात्रि 8:18 बजे होगी।

शरद पूर्णिमा का व्रत विशेष माना गया है। ऐसी मान्यता कि शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है। जो लोग गंभीर रोग से पीड़ित हैं उनके लिए शरद पूर्णिमा का व्रत रखना विशेष फलदायी माना गया है।

शरद पूर्णिमा को शाम के समय खीर बनाई जाती है और खीर को खुले बर्तन में रखकर रातभर चंद्रमा की किरणों में रखा जाता है और अगले दिन इस खीर को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।

इसके अलावा शरद पूर्णिमा का व्रत संतान की लंबी आयु के लिए भी रखा जाता है यह व्रत सुख समृद्धि लाता है।शरद पूर्णिमा की रात तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर पूजा करने का विधान बताया गया है। वहीं ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शरद पूर्णिमा पर घी के 100 दीपक जलाने से घर लक्ष्मी जी की कृपा बरसती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।