भरत लाल मृतक कागज़ पर जीवित पर पर्दे पर अमर

मत सहल जानों, फिरता है फ़लक बरसों
तब खाक़ के पर्दे से, इक नूर निकलता है

यह संभव हुआ है फ़िल्म इंडस्ट्री में अंगद पांव जमा चुके धुरंधर अभिनेता पंकज त्रिपाठी के कागज़ मूवी में मुख्य अभिनय से। यह तो तय है कि यह मूवी पंकज के अभिनय क्षेत्र में नूतन इतिहास रचेगी।

कल यानी दिनांक 7 जनवरी को समय था, सतीश कौशिक द्वारा निर्देशित फिल्म कागज़ के प्रीमियर का। सिनेमा हॉल में फ़िल्म के खत्म होने पर दशकों की तालियों की गड़गड़ाहट ने यह साबित कर दिया कि यह फ़िल्म सफलता की चरम पर है। कमोबेश सभी की ज़ुबान पर यही था कि नदिया के पार के बाद गांव की पृष्ठभूमि पर ऐसी सुंदर और साफ सुथरी फ़िल्म यह बनी है। काश कि पंकज भाई भी वहां लोगों की इंस्टेंट प्रतिक्रिया व सराहना सुन पाते।

यह कहानी शादियों में बैंड बजाने वाले आज़मगढ़ निवासी भरत लाल मृतक की बायोग्राफी पर बनी है। जिसमें वो सरकारी कागज़ पर मृत घोषित हो चुका है व स्वयं को जीवित घोषित करने के लिए वर्षों सरकारी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ संघर्ष करता है। इस किरदार को पंकज ने बखूबी निभाया बल्कि अमर कर दिया है।

इस फ़िल्म में पंकज का अभिनय मुझे 1997 में ऑस्कर जीती, सच्ची कहानी पर आधारित फ्रेंच मूवी life is beautiful के राइटर, डायरेक्टर, एक्टर Roberto Benigni  की याद दिलाता है, जो अपनी मासूमियत से हँसाते भी हैं व कहीं गहरे संवेदनशील भी कर जाते हैं।

पंकज की सबसे खास बात कि वो जो मूक अभिनय के मार्फत बहुत कुछ बोल देतें हैं, वो तो लाजवाब ही कर जाता है। पंकज के परिपक्व अभिनय पर कुछ कहना तो मात्र सूरज को दीया दिखाना ही होगा। अतः आप सब स्वयं यह फ़िल्म देखकर निर्णय करें।

अभिनेत्री के रूप में नवोदित अदाकारा मोनल गज्जर ने भी बेहद स्वाभाविक अभिनय किया है। गुजराती होते हुए भी भोजपुरी परिवेश में डायलॉग बोलना उसके लिए भी चुनौती रही होगी।

सफल निर्देशक व एक वक़ील के रूप में सतीश कौशिक ने बखूबी अपने आप को पारंगत साबित किया है। किसी आम कहानी को रोमांचक बनाना सरल होता है, मगर एक बायोपिक को दिलचस्प बना कर कसावट के साथ पेश करना एक निर्देशक के लिए चैलेंज होता है, जिसमे सतीश कौशिक बेहद सफल हुए हैं।

कथा एवं डायलॉग राइटिंग अंकुर व सुशांत खण्डेलवाल ने बिल्कुल समय व परिवेश के अनुकूल किया है। कुल मिलाकर ये फ़िल्म एक नए युग की शुरुआत कर रही है।

जहां सो कोल्ड नामी गिरामी अभिनेताओं की तूती नहीं बोलेगी, बल्कि पंकज त्रिपाठी जैसे मंझे हुए कलाकार की तूती बोलेगी। एक फ़िल्म की लोकप्रियता के लिए केवल पंकज त्रिपाठी का नाम ही काफी है, चाहे उसमें उनका छोटा सा ही रोल क्यों न हो।

अभिनय व निर्देशन के लिए इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिलना ही चाहिए।फ़िल्म की पूरी टीम को ढेरों बधाई व शुभकामनाएं और पंकज भाई को अशेष स्नेह, प्यार, दुलार व आशीष। भाई हिंदुस्तान के फलक पर तो छा गए अब हॉलीवुड का पोस्टर फटने का बेसब्री से इंतजार है।

सरोज सिंह