मरने के बाद- मुकेश चौरसिया

मरने के बाद मुझे एहसास हुआ कि जिंदा रहने के क्या फायदे थे। मैं सोच रहा था कि या तो यमदूत या फरिश्ते मुझे लेने आएंगे। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। आसपास कोई नहीं था। कुछ और आत्मा टाइप के लोग मुँह लटकाए किसी यमदूत की प्रतीक्षा कर रहे थे। मरने के बाद भी वे निराश-परेशान थे।
मेरी मौत अचानक ही हो गई। पिछली रात को अच्छा भला सोया था आधी रात को दिल का दौरा पड़ा और सीने में हाथ रखते ही प्राण निकल गए। पत्नी को जब सबेरे-सबेरे मेरे हाथ की बनी बेड टी नहीं मिली तो उसे चिंता हुई। उसने एक दो बार हिला हिला कर जगाना चाहा। चूँकि मैं मरा हुआ था इसलिए नहीं उठा। पत्नि बड़बड़ाती हुई उठी। थोड़ी देर तक मुझे अजीब सी निगाहों से देखती रही फिर घबरा गई। तुरंत ही चिंटू- पिंटू को आवाज दी। दोनों ने मुझे हिला डुलाकर उठाने की कोशिश की। पिंटू ने मुझे गुदगुदी भी लगाई। थोड़ी ही देर में उनको समझ में आ गया कि मैं मर चुका था परंतु फिर भी उन्हौंने पड़़ोस से डॉक्टर को बुला लिया। मैने चिंटू को लाख मना करने की कोशिश की लेकिन जिन बच्चों ने जीते जी मेरी न सुनी हो वो मरने के बाद क्या सुनेंगे। डॉक्टर ने मेरी शक्ल देख कर ही कह दिया कि मैं मर गया हूँ। कमबख्त ने कलाई देखने तक की जहमत नहीं उठाई। पत्नि ने सुना तो ढांढें मारकर रोने लगी। साथ में चिंटू पिंटू भी रोने लगे। थोड़ी देर में मेरे पड़ोसी, स्कूल के साथी टीचर और प्रिंसीपल साहब भी आ गए। वे सभी धैर्य बंधाने लगे। कुछ पड़ोस की महिलाएं भी रोने लगीं। इतने में हमारी कामवाली बाई आ गई और उसने इतनी जोरों से रोना शुरू कर दिया कि बाद में आने वाले आपस में ये पूछने लगे कि इनमें से मास्साब की मिसेज कौन हैं। मेरी पत्नि हर आने वाले को मेरे मरने की कहानी सुनाती लोग बारे बार पूछते और वह बार बार उतने ही उत्साह से सुनाने लगती।
कहानी कुछ इस प्रकार थी। क्या बताऊँ भाई साब रात में ये अच्छे भले सोए। मैंने रोज की तरह इनके पैर दबाए। सोने से पहने चमनप्रकाश (वही च्यवनप्राश) और एक ग्लास दूध दिया। ये कहने लगे कि मेरे सिर में दर्द हो रहा है मैंने सिर में बाम भी मली। मैं इनसे कहती थी कि काम का इतना टेंसन मत लो पर इनने कभी मेरी बात नहीं मानी। सबेरे मैंने इनको चाय के लिए जगाया तब जाके पता चला ऊऽऽऽऽ….ऊऽऽ….ऊऽऽ…..ऊऽऽ।
सरासर झूठ बोल रही थी कमबख्त। पर यारों इस झूठ में वो मजा था कि यदि ये सच होता तो मैं कुछ साल और जी लेता। इतनी बार अपने मरने की कहानी सुन सुन के मैं बोर हो गया। लोग मेरा अंतिम संस्कार करने के लिए अधीर होने लगे। मेरी मिट्टी यूँ ही पड़ी रही तब प्रिसीपल साहब ने स्कूल के दो लड़कों को मेरे शरीर से मक्खी उड़ाने के लिए कह दिया। वे निर्विकार भाव से मक्खियाँ उड़ाने लगे। जब सब रिश्तेदार आ गए, रोना धोना हो गया तो मुझे अर्थी पर लिटा दिया। लोगों ने इतनी जोर से मेरे शरीर को रस्सी से बाँधा कि मेरा पोर-पोर दुखने लगा।
लोगों को मुझे श्मशान पहुँचाने मे ज्यादा तकलीफ नहीं हुई क्योंकि श्मशान ज्यादा दूर नहीं था और मेरा वजन भी ज्यादा नहीं था। श्मशान घाट वाकई खूबसूरत बना हुआ था। मुझे पहली बार पवन यादव पर गर्व हुआ। उसने व्यक्तिगत रुचि लेकर मेरे नगर में दो काम किए थे एक तो अंग्रेजों के जमाने की बनी सराय को तुड़वाया था दूसरे इस मुक्तिधाम के लिये काम किया था। वह हमेशा मुझसे आग्रह करता था कि मैं वहाँ जीते जी जाकर होने वाले निर्माण कार्य को देखूँ। लेकिन मेरे पास समय नहीं था। आज मैंने जीभरकर इस मुक्तिधाम को देखा। स्कूल के प्रिंसीपल साहब ने कुछ विद्यार्थियों को चिता तैयार के काम में लगा दिया। मेरे स्टाफ के मित्र बड़े उत्साह से इन विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते रहे। चिता तैयार होने तक लोग तंबाकू खाते रहे, बीड़ी पीते रहे और दीन दुनिया की बातें करते रहे। श्मशान वैराग्य किसी को नहीं हुआ। मुझे पहली बार लगा कि यहाँ एक होटल होना चाहिए थी ताकि लोग समोसा जलेबी खा सकें और चाय पी सकें। मैं पवन को ये सलाह देना चाहता था लेकिन वो तो उल्टे ही मेरे बेटे को मेरी याद में बेंच लगाने और पौधे लगाने के लिये पटा रहा था।
लोग छोटे-छोटे समूहों में गोल बना कर बैठे थे और देश की अर्थव्यवस्था पर, राजनीति पर, चुनाव पर, देश की हालत पर, श्मशान में बढ़ते अतिक्रमण पर चर्चा कर रहे थे। मैंने कुछ मित्रों को उधार दे रखा था वे उल्टे ही अपने रुपये डूबने का रोना रो रहे थे। मुझे बड़ा गुस्सा आया। मेरा वश चलता तो कम्बख्तों को अपने साथ ही चिता  खींच लेता। इस समय मन मसोस कर रह गया। मेरा बड़ा लड़का मौके जिसने बड़ी मुश्किल से बीए किया था वो मेरे प्रिंसीपल साहब से अनुकंपा नियुक्ति की प्रक्रिया समझ रहा था। मेरा सीना गर्व से चौड़ा होना चाहता था लेकिन आत्मा ही फूल पाई।
जिन लोगों को में अपना परम मित्र समझता था वे लोग मेरे पुराने प्रेम प्रसंगों पर खुलकर चर्चा कर रहे थे। मेरे जीते जी उन्होंने मेरे राज को अपने सीने में दबा रखा था आज वे उस कसम से आजाद हो गए थे।
चिता सजने के बाद मेरे फूफा जी जो दूर बैठे अपनी लड़की के विवाह प्रस्तावों के बारे में मेरे चाचा को बता रहे थे वे आए और उन्हौंने कहा कि चिता सदा उत्तर दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए और इसके बाद जिस प्रकार तर्क देना शुरू किया उनको सुनने के बाद लड़के कुड़कुड़ाते हुए फिर से लकड़ियाँ सजाने लगे। इसके बाद मुझे चिता पर लिटा दिया गया। तब मेरे दूर के रिश्ते के काका आए और उन्होंने कहा कि मुर्दे को हमेशा पट लिटाकर जलाना चाहिए। इसके बाद मेरे फूफा और काका में खूब विवाद हुआ। फूफा ने काका से कहा कि मुर्दे को गलत तरीके से जलवा कर नर्क भेज रहे है।
खैर किसी तरह मेरे साले ने उनको समझाया। लोग धूप मे खड़े-खड़े परेशान हो रहे थे। किसी को दफ्तर जाने की देर हो रही थी किसी को दूकान खोलने की जल्दी थी। अंत में मेरे लड़के ने मुझे आग दी और लोग अपने अपने घर चले गए।
मैं अकेला रह गया। मैंने सोचा चलो स्कूल चलते हैं। वहाँ बच्चे कम आए थे। उन्हैं पता चल गया था कि मैं मर गया हूँ और छुट्टी हो जाएगी। जब घंटी बजी तो प्रिसीपल साहब मातमी सूरत बनाकर आए और मेरे व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए मेरे निधन को अपूरणीय क्षति बताया। इसके बाद दो मिनट का मौन रखा गया। हमारे पी टी आई ने लड़कों को सख्त हिदायत देते हुए कहा कि कोई हँसेगा नहीं। लेकिन शरारती लड़कों में से किसी ने पीऽऽऽऽ…. टींऽऽऽऽ…. की आवाज की और सब ओर हँसी के ठहाकों की आवाज आने लगी। सबेरे से जो मातमी माहौल बना था उसके बाद इस हँसी से मुझे बड़ी राहत मिली। लेकिन प्रिंसीपल साहब ने लड़कों को खूब डाँटा। लड़के डाँट खाकर इस बार सचमुच की मातमी मुद्रा में आ गए। उनके मौन रहने से प्रिंसीपल साहब की आत्मा को शांति मिली।
मेरे साथी शिक्षको को मेरे मरने का बड़ा अफसोस था। वे सब मेरे बारे में इतने जोर जोर से बोल रहे थे कि मंजुला मैडम को सुनाई पड़ जाए। कुछ लोगों को इस बात की चिंता थी कि शाला विकास का चार्ज अब किसके पास आएगा। अधिकांश लोग इसे लेना भी चाहते थे और नहीं भी क्योंकि मेरी कैश बुक पिछले कई महीनों से नहीं लिखी गई थी। उन्हैं इस बात का भी अफसोस था कि कल से उनके एक-एक पीरियड और बढ़ जाएंगे। काम के बोझ से दबे मेरे ये जिंदा भाई सचमुच दुखी थे। मुझे इस बात पर अफसोस हुआ कि वे लोग मुझे ईमानदार समझते थे। पर मैं ईमानदार नहीं था। कायरता का दूसरा नाम चरित्र है। मेरी पत्नि और बच्चों को भी मेरी ईमानदारी पर अफसोस था। यूँ कुछ देर अफसोस मनाने के बाद मेरे ये भाई अपने अपने घरों को चले गए।
यमदूत अब तक नहीं आए थे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। तभी एक अन्य आत्मा ने मुझे हौले से छुआ। ये श्रीमान लतीफ घोंघी थे, मेरे साहित्यिक अग्रज। उन्होंने सलाह दी कि तुम अपने अनुभवों को लिख डालो। मुझे खेद हुआ कि एक सर्विस बुक के अलावा मेरी कोई प्रामाणिक जीवनी नहीं है।
मैने लतीफ भाई से कहा, ‘लतीफ भाई! लोग मेरे लेख की तुलना तुम्हारे लेख से करेंगे। आखिर तुम भी मास्टर मैं भी मास्टर। तुम भी व्यंग्यकार मैं भी व्यंग्यकार।’
मेरी अनेक इच्छायें अधूरी रह गई थीं। मैंने सुन रखा था कि अगर मरने वाले इच्छायें अधूरी रह जाये तो वह भूत बन जाता है। सच कहूँ तो मैं भूतों से डरता था। अब भूत बनने के खयाल से डर गया था। मेरी पहली इच्छा थी कि मुझे स्कूल के टूटे-फूटे फर्नीचर में जलाया जाए। फर्नीचर का चार्ज मेरे पास था। इसके हिसाब में भी बहुत गड़बड़ थी। अफसोस मेरी ये इच्छा पूरी हो नहीं सकी। मैं जब भी मंजुला मैडम को गुलाबी साड़ी पहने देखता और जब वे बालों का खुला रखती थी तो मेरा मन होता था,तो मेरा मन होता कि मैं जोर जोर से गाऊँ ए मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हंसी और मैं जवान। दोस्तों ये मेरी दूसरी इच्छा थी। तीसरी, चौथी, पाँचवी इच्छायें भी मंजुला मैडम से ही संबंधित थी।
दूसरे दिन स्थानीय दैनिक में मेरे मरने की खबर मेरे मुस्कुराते हुए फोटो के साथ छपी। इसी दैनिक में मेरे व्यंग्य वगैरा छपते थे। उसी शाम को प्रिंसीपल साहब मेरे घर आए और मेरे बेटे से अनुकंपा नियुक्ति के लिए दरख्वास्त बनवाकर ले गए।

‘इश्क तेरे फरेब में, ये किस मुकाम तक आ गए
घुट घुट के जिए ऐसे कि श्मशान तक आ गए
मेरी नेकी के चर्चे रहे जमाने में कुछ इस तरह
कि फरिश्ते मुझे ढूढते मेरे मकान तक आ गए’

-मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी,
केवलारी, जिला- सिवनी