बने राष्ट्रभाषा हिंदी: गौरीशंकर वैश्य

भारत के मस्तक की बिंदी,
प्यारी जनभाषा हिंदी
तकनीकी, कौशल, विकास से
बने राष्ट्रभाषा हिंदी

दुधबोली में तुतलाते हैं
आपस में हम बतियाते हैं
माँ की भाषा में गाते हैं
भावों का मधु रस पाते हैं

काली आँधी सी अँग्रेजी,
मोहक चौमासा हिंदी

अँग्रेजी है बनी छलावा
देती आयी सदा भुलावा
शोषण ऐंठ-अकड़ इसमें है
हिंदी में मनुहार बुलावा

रोग मानसिक है अँग्रेजी
स्वस्तिक अभिलाषा हिंदी

अँग्रेजी है घर की आया
माँ जैसा कब प्यार लुटाया
पाल पोस कर हिंदी ने ही
हम सबको है सबल बनाया

अँग्रेजी सुख-चैन छीनती
नित नूतन आशा हिंदी

अँग्रेजी से नाता तोड़ें
हिंदी माँ से तन-मन जोड़ें
पढ़ें, लिखें, बोलें निज भाषा
मन से दीनहीनता छोड़ें

अंड-बंड चीखे अँग्रेजी,
मृदु बारहमासा हिंदी

हिंदी पर हम बलि बलि जाएँ
शिक्षा-माध्यम में अपनाएँ
मोबाइल, फेसबुक, संगणक
यंत्र-तंत्र में हिंदी लाएँ

राष्ट्रवाद स्वर मुखरित कर दे,
नूतन परिभाषा हिंदी
भारत के मस्तक की बिंदी
प्यारी जनभाषा हिंदी

गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117, आदिलनगर, विकासनगर,
लखनऊ, उत्तर प्रदेश- 226022
संपर्क- 09956087585