बेटी की साक्षरता: सोनल ओमर

सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश

दीपक…ओ दीपक…!! उठ जा बिटवा। स्कूल जाएं का बखत हुई गवा – माँ दीपक को उठाती है। तभी दीपक की छोटी बहन रोशनी कहती है- “अम्मा, हमको भी भईया की तरह स्कूल जाना है। हमको स्कूल काहे नहीं भेजती हो?”

“पढ़ाई मा बहुत खर्चा होता है। तुम्हरे बप्पा की भी साझे पर की दुकान है ऊ मा जो कमाई होती है। उसमें से आधी तुम्हरे चाचा ले जाते हैं। आधे में ही घर चलाना पड़ता है। पैसा पूरा ही नही पड़ता। औ बिटिया, तू स्कूल जाके का करेगी। तुझे सम्भलना तो घर-संसार ही है। भईया को पढ़े दे ऊ पढ़-लिख के हमरा नाम करेगा, हमरा सहारा बनेगा”

छोटी-सी उम्र में ही रोशनी काफी समझदार हो गई। वो घर की परिस्थितियां समझती थी, इसीलिए कभी कोई मांग नहीं करती थी। जितना मिल गया उतने में ही खुश रहती थी। लेकिन पढ़ने की ललक कभी-भी उसकी कम नहीं हुई। पढ़ाई में दिलचस्पी होने के कारण वह घर पर रहकर ही अपने भाई की किताबें पढ़ा करती थी। गणित के सवाल तो वह चुटकी बजाते ही हल कर लेती थी। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण दीपक अपना कार्य भी उसी से कराया करता था। बल्कि परीक्षा के समय रोशनी दीपक की पढ़ने में मदद भी करती थी।

इस प्रकार समय अपनी चाल से चलता रहा और दीपक ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली। दीपक के पिता रामदयाल अपने बेटे को वकील बनाना चाहते थे। पढ़ाई में बहुत खर्चा था तो छोटे भाई से पैसे उधार लेकर दीपक का दाखिला लॉ कॉलेज में करा दिया। गाँव से दूर शहर में हॉस्टल में कमरा दिला कर दीपक की पढ़ाई का इंतजाम कर दिया।

दीपक जब भी छुट्टियों पर घर आता अपनी पुरानी किताबें घर ले आता। रोशनी उन किताबों को पढ़ती। वह गाँव के बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी। लेकिन दीपक शहर जाकर दोस्तों-यारों के गलत संगत में पड़ गया। उसका जीवन अनुशासनहीन हो गया। उसका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था। परिणामस्वरूप तीसरे वर्ष की परीक्षा में वह फेल हो गया। इसके बाद वह सबकुछ छोड़-छाड़ के वापस गाँव लौट आया। माँ-बाप के लाख समझाने पर भी वह अपनी पढ़ाई पूरी करने नहीं गया।

फेल होने शर्मिंदगी में दीपक सारा दिन घर पर ही पड़ा रहता, कोई काम भी नहीं करता था। इधर दीपक के पिता का कर्जा भी बढ़ता जा रहा था। रामदयाल ने सोचा था कि दीपक वकील बन के उनका हाथ बटाएगा, घर मे चार पैसे आयेंगे उनका कर्ज उतरेगा, पर ऐसा कुछ भी न हुआ।

रामदयाल की यह दशा देखकर उसके भाई ने उनकी दुकान व कारोबार जिसपर दोनों का बराबर का हक था हड़प कर ली। रामदयाल के भाई ने रामदयाल की निरक्षर होने के कारण धोखे से कर्जे के कागज की जगह दुकान के कागजो पर अंगूठा लगवा लिया था।

सबको लगा अब तो रामदयाल की दुकान गई। कागज पर अंगूठा होने के कारण रामदयाल ने भी दुकान वापस मिलने की आस छोड़ दी थी, पर तब ही रोशनी ने कानूनी कार्यवाही कर के धारा 420 व धारा 120 बी के तहत धोखाधड़ी का मुकदमा अपने चाचा पर कर दिया। आज सभी को रोशनी की सूझबूझ, बुद्धि व ज्ञान पर गर्व हो रहा था।

रामदयाल ने रोशनी से कहा, “आज तुम्हरे ही कारण बिटिया, हमका उम्मीद की रोशनी मिली।”

तब रोशनी ने कहा, “बप्पा, अगर आप हमका पढ़ाये होते तो आज आपको इस मुकदमे के लिए वकील न करना पड़ता। हम खुद यह मुकदमा लड़ते। हम कमाते भी और आपका कर्जा भी उतरते!”