गुज़रे हुए लम्हें: अतुल पाठक

मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका
जब करीब से देखा था,
हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था

गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते,
पर यादों का कारवाँ
होंठों पे हँसी मुस्कान ज़रूर ले आता है

वो ख़ुशनुमा पल कैसे भूल सकता मैं,
उसके मीठे अल्फ़ाज़ और जादूई मुस्कान को
आज भी याद करता मैं

ज़िन्दगी को सही मायने में जीने के लिए
ज़िन्दादिल होना बेहद ज़रूरी है,
दो पल की ज़िन्दगी है
इसे यादगार बनाना ज़रूरी है

खुद को कहीं गुम न होने देना,
खुद को अपनेआप में तलाशना भी ज़रूरी है

अतुल पाठक ‘धैर्य’
हाथरस, उत्तर प्रदेश