हे हंसवाहिनी माँ: आलोक कौशिक

हे हंसवाहिनी माँ
हे वरदायिनी माँ

अज्ञान तम से हूँ घिरा
अवगुणों से हूँ मैं भरा
सुमार्ग भी ना दिख रहा
जीवन जटिल हो रहा

ज्योति ज्ञान की जलाकर
गुणों की गागर पिलाकर
सत्पथ की दिशा दिखाकर
जीवन सफल बना दो माँ

हे हंसवाहिनी माँ
हे वरदायिनी माँ

तू ही संगीत तू ही भाषा
तुम ही विद्या की परिभाषा
तेरी शरण में जो भी आता
बुद्धि की निधि वो है पाता 

विनती सुनो माँ भारती
लेकर पूजा की आरती
तुझे संतान पुकारती
प्यार से निहार लो माँ

हे हंसवाहिनी माँ
हे वरदायिनी माँ

आलोक कौशिक 
साहित्यकार एवं पत्रकार
मनीषा मैन्शन, बेगूसराय, बिहार 
संपर्क- 8292043472