ज़ख़्म, तन्हाई, जुदाई: रकमिश सुल्तानपुरी

ज़ख़्म, तन्हाई, जुदाई, सब किया है आपका
आप अपने दिल से पूछो मामला है आपका

सिर्फ़ तन्हाई के बदले क्या मिला है इश्क़ में,
ख़ार, ख़ंजर, दर्द, नफरत तो दिया है आपका

आपकी नज़रों में लगता इश्क़ कोई खेल है,
तो सुनो बेशक़ ग़लत है ये तजुर्बा आपका

आपको परहेज़ अब भी है मेरे क़िरदार से,
तो करूँ क्या यार मैंने क्या लिया है आपका

ज़ाम ले भरपूर अपनी शौक़ पूरा कीजिये
महफिलें है आपकी ये मयकदा है आपका

आप अपना सोचिएगा इश्क़ में क्या चाहिए,
ख़ार, ख़ंजर, दर्द, नफरत फ़ैसला है आपका

बेवज़ह क्यों ढूँढते हो इश्क़ में रकमिश सुकून
इश्क़ में केवल ग़मों से सामना है आपका

रकमिश सुल्तानपुरी

ग़ज़ल- दोगले क़िरदार: रकमिश सुलतानपुरी