कितना कुछ अनकहा है: प्रार्थना राय

नौ कमरे हैं
नौ दरवाजे हैं
नौ खिड़कियां भी हैं
फिर भी बैठने को सहन नहीं

कुछ तुम्हारे शब्द हैं
कुछ हमारे शब्द हैं
और कुछ उनके शब्द हैं
फिर भी सभी निशब्द हैं

कुछ तुम कहो
कुछ हम कहें
और कुछ वो कहें
फिर भी कितना कुछ अनकहा है

प्यास भी है
सागर भी है
गागर भी है
फिर भी सभी प्यासे हैं

हम हैं
तुम हो
और भी लोग हैं
फिर भी सब अकेले हैं

बड़ा घर
आवश्यक नहीं कि बड़ा ही हो
सभ्य लोग

आवश्यक नहीं कि
रूढ़ियों के भार से मुक्त हों
आजकल विकसित होती
सभ्यता में संकुचित होते परिवार के दायरे

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश

तुम कैसी हो: प्रार्थना राय