लेखनी का नूर: जयलाल कलेत

उनकी तरह घड़ियाली आंसू मत रोना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना,

पेचीदा है यहां की सियासत,
तुम फिदा उन पर मत होना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

ज़ुल्म की डगर में ये चल पड़े हैं,
तुम अपने ईमान से जुदा मत होना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

सहज है सच को दफनाना यहां पर,
सियासी हलचल का शिकार मत होना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

उठाएंगे बुरी निगाहें लोग तुम पर,
पर अपने उसूल से मजबूर मत होना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

ये पर्दे डालेंगे अपनी करतूतों पर,
पर हकीकत को हकीकत लिख देना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

खोये हैं ज़िगर के टुकड़े उस आंचल ने,
उन आंसुओं की सच्ची कहानी लिख देना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

लोग बिक रहें हैं, आगे भी बिकते रहेंगे,
पर अपराधी को अपराधी लिख देना,
लेखनी तुम अपना नूर मत खोना।

जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़