मैं दीया हूँ: कुलदीप सिंह

मेरा अस्तित्व मिट्टी है, आज और कल बता देता हूँ

बहुत लम्बा इतिहासक सफ़र है मेरा सुना देता हूँ

हर साल नया बनकर टूटा, सब कुछ भूला देता हूँ

चक्र-जीवक जन्मदाता है मेरा अभिनंदन, देता हूँ

सूरज पिता मिट्टी माता अग्नि अस्तित्व बता देता हूँ

दीप दीपक चिराग आदि नामों से अपनी पहचान लेता हूँ

पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से अँधेरों में रोशनी देता हूँ

औद्योगिक क्रांति से पहले मैं अँधेरे का मसीहा बता देता हूँ

डूबते सूरज को हर रोज अँधेरा कम करने का वचन देता हूँ

जुगनु दोस्त के संग रातों को अँधेरा डोहता हूँ,

रातभर हवा, अँधेरे और अन्धेरी को लताड़ देता हूँ

मैं अंधेरों में अपना और मालिक का पता देता हूँ

जहाँ जलता हूँ अपना पराया सब पहचान लेता हूँ

बाती और तेल को अपने में जला लेता हूँ

आग में तपते रंग मेरा काला अँधेरे में सब सह लेता हूँ

शमा में जले कीट पतंगों को अपने अंदर सुला लेता हूँ

जल गये पंख जिनके हमसफ़र मान लेता हूँ

मस्तिष्क पर जलता अंदर के विकार, अँधेरा निकाल देता हूँ

उत्सव और त्योहारों को जगमगा देता हूँ,

पूजा पाठ में भगतजनों का हर पल साथ देता हूँ

दिवाली में रातभर प्रकाश और संकल्प देता हूँ,

मामूली कीमत वज़ूद बड़ा चीनी लड़ियोँ को बता देता हूँ

दीप से दीप जलाना मेरी नैतिकता ही दाम बता देता हूँ

शिक्षक मेरा संगी साथी जग को बता देता हूँ

खुद जलकर ज्ञान देने वाले शिक्षक को मुबारकबाद देता हूँ

मेरा और शिक्षक का कर्म धर्म एक डँका बजा देता हूँ

मेरे गौरवमयी इतिहास की गाथा थिंद कुलदीप’ को सुना देता हूँ

कुलदीप सिंह थिंद