जी ले स्वाभिमान से: मुकेश चौरसिया

लक्ष्य को आंखों में भर, इरादे कर चट्टान से।
जब तलक जिंदगी, तू जी ले स्वाभिमान से।।

हो राहों में जो शूल तो,
हो वक्त भी प्रतिकूल तो,
हो दृष्टि में भी धूल तो,
ये सभी बौने बनेंगे, तेरी एक मुस्कान से ।।
जब तलक जिंदगी, तू जी ले स्वाभिमान से।।

समझौते न हो राह से,
डर ना अपनी ही कराह से ,
न फूल वाह-वाह से ,
जग तुझे है जीतना, अपनी आन बान से ।।
जब तलक जिंदगी, तू जी ले स्वाभिमान से।।

माप सारी मुश्किलों को,
नाप अपने हौसलों को,
थाम सारे जलजलों को,
लक्ष्य को भेदने निकल, तीर ज्यों कमान से।।
जब तलक जिंदगी, तू जी ले स्वाभिमान से।।

मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी, केवलारी,
सिवनी, मध्य प्रदेश