एक दुःखान्त कविता: स्नेहा किरण

मैं जब कभी काजल लगाती हूँ
आप से आप मेरी पलके भीग जाती है
पूरा मेकअप खराब हो जाता है
फिर से टच अप करना पड़ता
उफ्फ
सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता
बहुत खोजने पर भी
कारण पता नहीं चल पाता
की ऊपरवाले ने कहां वार किया है?
न ज़ख्म दिखते है
और न ही कोई निशान ही
पर दर्द से आत्मा कराह कर
बिल्कुल नीली पड़ चुकी है

इतना दर्द
इतना दर्द की बस
कराहने की आवाज़ भी
नहीं निकलती कभी-कभी

मैं होटलों में जाती
आये दिन एक्स्ट्रा टिश्यू पेपर
उठा लेती हूँ टेबल से
एक दिन  वेटर ने पूछ ही लिया
मेमसाहब क्या करती है आप
आखिर इतने टिश्यू पेपर का?
आर्डर तो कुछ देती नही खाने का
बस चाय की एक कप के बाद दूसरी

चाय की चुस्कियों में टिश्यू पेपर का क्या काम?
कोई बताए भला?

एक दिन ऊब कर मैंने बोल ही दिया
बच्चे मेकअप करती हूँ अपने इस थोबड़े का
काजल लगी भींगी पलके अपनी
बेहद करीने से
साफ करती हूँ पलकों को
उसने पूछा मेमसाहब
टिश्यू पेपर से कौन सा मेकअप होता है भला
मैंने बोला होता है न
बस तुम्हे पता नहीं है
इस दुनिया मे एक चेहरे से काम नहीं चलता
10-20 चेहरे लगाने पड़ते है
और उनमें 10 शेड्स की अलग अलग मेकअप किट आती है
और वो अगर आंसुओं से भींग जाए तो
बस एक टिश्यू पेपर ही सहारा बनता है बस

उन सभी को थोपती हूँ हर दिन
अपने इस थोबड़े पर
फिर उसे नकली मुस्कान से सजाती हूँ
और फिर डिजिटल इंडिया के प्रतीक
एंड्राइड से लेती हूँ खुद की तस्वीर
एक मस्त स्माइल करती हुई
सेल्फी लेती हूँ खुद की
और उसे लगा देती हूँ यहां -वहां
तुम्हें पता नहीं बच्चे
कितने लोग खुश होकर दुआएं देते है
कितने लोग आशिर्वाद देते है
कुछ मन ही मन चिढ़ जाते है
क्योंकि उन्हें पता नही की
मुस्कान तो झूठी है

फिर मैं बड़े आराम से
अपना दर्द सरेआम बाजार में बेच देती हूँ
क्योंकि सच तो यही की दुनिया की मंडी में
एक दर्द ही तो है जो सबसे महँगा बिकता है..
और तो और
इस दर्द के खरीददार भी
बड़े- बड़े लोग होते है
इसी दर्द ने बड़ी -बड़ी
जिम्मेदारियां भी दिलवा दी

यार बस मजा आ गया मुझे
इस दर्द के साथ रहते -रहते
मुझे इस पूरी दुनिया में
एक मेरा दर्द ही अपना लगता है
जो मुझे कभी छोड़कर
नहीं जाता कभी
बाकी सब झूठे लगते
सब खोखले लगते है

ओ रे दर्द
तू मेरा कितना सगा है
और मैं तेरी
कितनी सगी हूँ

स्नेहा किरण
अररिया, बिहार
युवा कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता