Tuesday, April 23, 2024
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तेरी ही ख़्वाहिश: संजय अश्क़

तेरी ही ख्वाहिश, तेरा ही ग़म
यही लिखते आया हूं हरदम

कभी अंगारों को लिखा फूल
कभी आंसु को कहा शबनम

कभी टुकड़े जोड़े मैंने दिल के
कभी ज़ख्मों पर रखा मरहम

कभी हंसकर तकलीफ़ छुपाई
कभी रोकर दूर किया है ग़म

मेरा हाल खुदा ने जब जाना
उदास हुवा मेरे साथ  मौसम

उस घर खुशियां आयेंगी कैसे
जहां रोज हो उम्मीद का मातम

जिंदगी तेरे बीन भी कांट ही ली
जीने का पाले हुए मन में भ्रम

संजय अश्क बालाघाटी

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