अग्नि परीक्षा: मुकेश चौरसिया

है सतत अग्नि परीक्षा।
तय तुझे है आज करना, कोयला हो राख हो जा।
या कि बन कुंदन निखर जा।
है सतत अग्नि परीक्षा।

कोई वस्तु है कि तू, तुझको सजाया जाएगा।
रूप से, लावण्य से, किसको लुभाया जाएगा।
हे मानवी उठ जाग, क्यूँ तुझको सताया जाएगा।
थाम अपने कर खड़ग, है तुझे किसकी प्रतीक्षा।
है सतत अग्नि परीक्षा।

इस सुलगते वारणावत से भला कैसा पलायन।
धार अग्नि हृदय में, ज्वाला से हो पूरित नयन।
प्राण रक्षा, मान रक्षा के मध्य में कैसा चयन।
कर सवारी सिंह की तू, हो सबल ले दंड दीक्षा।
है सतत अग्नि परीक्षा।

आज बढ़कर थाम ले, ज्ञान को, विज्ञान को तू।
त्याग भय, लाज, दैन्य, त्याग सब अज्ञान को तू।
तू प्रबल, तू सबल, मान रख निज सम्मान का तू।
लोग क्या हैं बोलते? अरे! काल करता है समीक्षा।
है सतत अग्नि परीक्षा।
है सतत अग्नि परीक्षा।

मुकेश चौरसिया
गणेश कालोनी, केवलारी,
सिवनी, मध्य प्रदेश