अटल प्रेम: पूरब निर्मेय

नये-नये इक घाट से हम थे, विषय तुम्हारा प्रेम रहा
और अलंकृत जीवटता से, वहीं पुराना द्वेष रहा
श्राप अहिल्या जैसा पाकर, पत्थर पूरा कल्प हुआ
हीन प्रणय के मौसम में भी, याद तुम्हारा स्नेह रहा

छल ही हल जैसा मिलता है और ना क्यूं कुछ पाते हैं?
सरल पृष्ठ के वचनों जैसे, जगत में तुमको गाते हैं
कंचन जैसी काया से ही, महक मिली थी चंदन सी
बार-बार यह भ्रम लेकर क्यूं, वापस घर तक आते हैं?

श्याम भी अपनी राधा हारे, पीर को तब ही कीर्ति मिली
अग्निपरीक्षा से सीता के, अटल प्रेम को रीति मिली
एक विरह ही सत्य कथा में, ऐसा सब बतलाते हैं
पीड़ा में आनंद के जैसी, खलिश तुम्हारी प्रीति मिली

हम ही चुप रह जायें अक्सर, एक यही अनुबंध रहा
बाद तुम्हारे नाम तुम्हारा, गीत की लय में संग रहा

पूरब निर्मेय
लखीमपुर-खीरी