चिट्ठी पत्री: प्रार्थना राय

मैं जानता हूं
एकांत में जब तुम मेरा पत्र पढ़ोगी
भला तुम अपने मन को कैसे वश में करोगी

आंँखों का पानी बना जलाशय
पानी में रवानी आई होगी
पत्र पढ़कर थोड़ा सा
सुकून पाई होगी

सुनो शुभे
परिवार की उथल-पुथल को
तुम बिसार देना, बड़ों की बातों को
आशीर्वाद समझना, छोटो को पुत्रवत स्नेह देना

अधीर हो रहा मन तुमसे मिलने को
दिवस गिनूँ उंगली पे दिन-रात
तेरे नयनों संग मेरे नयनों से
प्रतिदिन झर-झर बहते नीर

कार्तिक बीता अगहन बीता
शेष रहे दुई मास अबकी
फगुआ जरूर घर आऊं
मन को न करना उदास

कल्पनाओं में संजोता
याद तुम्हारी बेबस मन को समझाऊं
कंचन मोहक छवि  तुम्हारी
स्वप्नों के आकाश में नजर आती

कल्पनाओं के अंतस पर
कोई जादुई बाण चलाए
मधु मुस्कान तुम्हारी
ह्रदय द्वार को भेद जाए

एहसास करूँ स्पर्श तेरा
लट छूये तेरे गालों को
जैसे अंबर में झूमें तारे
पाजेब की छन-छन से बहके मन मेरा

चूड़ी, बिंदी, कजरा, गजरा
मांग सोहे सिन्दुर हमें बुलाते
विरह की ज्वाला झेली ना जाए
शीघ्र अति शीघ्र मैं तुमसे मिलने आऊं

 मन में ना रखना कोई अफ़सोस
 रोजी रोटी के कारन आ बसा परदेस
 मात-पिता संग सभी बड़ों को सादर प्रणाम
 छोटों को शुभ स्नेह बोलना

  हे शुभे
  तुम पर न्यौछावर
  सारा जहान

  प्रार्थना राय
  देवरिया, उत्तर प्रदेश

कविता- अनिवार्यता: प्रार्थना राय