खटिया: त्रिवेणी कुशवाहा

खटिया यानी चारपाई जो रस्सी अथवा नेवार से बुनी हुई होती है, वैसे तो सोने व आराम फरमाने के लिए होता है। परन्तु यह खटिया आराम फरमाने के साथ-साथ किसी व्यक्ति के इज्जत-आबरू और मान-सम्मान का भी प्रतीक होता है।

चालीस-पंचास साल पहले जहाँ प्रत्येक गांवो में सरपंच अथवा बाबुसाहब के दरवाजे पर या बंगला में आठ-दस खटिया पड़े रहते थे और गाँव के बड़े बुजुर्ग बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाने के साथ ही गाँव के विकास पर राय-मसौदा तैयार करते थे। आज वह स्थान कुर्सी मेज आदि ने ले लिया है परन्तु कुछ गांवो में सरपंचो के शान तथा गरीब व्यक्तियों के लिए अभी भी खटिया ही चार चाँद लगाता है।

हमारे गाँव के बुजुर्ग कहते हैं कि जब किसी की नई नवेली बहुरिया मायके से किसी खास इमारती लकड़ी की खटिया लेकर आती थी तो पूरे गाँव में चर्चा का बिषय होता था कि फला की बहुरिया खटिया लेकर आई है। खैर अब तो खटिया की जगह पलंग, दिवान व तख्त आदि ने ले लिया है फिर भी खटिया अभी तक अपनी पहचान बनाये हुये है।

जब गांवो में वैशाख-ज्येष्ठ की झुलसती गर्मी चलती थी। तब लोग अपनी-अपनी खटिया लेकर आम के बगीचे या पीपल, पाकड़, बरगद के छाँव में चले जाते थे और वहाँ पेड़ की शीतल छाया में आराम फरमाते हुए एक-दूसरे को क़िस्से कहानियाँ सुनाया करते थे।

कभी-कभी तो गुंडा बदमाश लोग भी अपनी धाक जमाने के लिए अगल-बगल के क्षेत्र में लोगों को अपनी बात न मानने पर बार-बार खटिया खड़ी करने की धमकी देते हैं। जिस पर कमज़ोर लोग आपसी समझौता करके अपनी खटिया की गरिमा बचाते हैं।

कहते हैं कि जब टल्लीबाबा का जमींदारी था तो टल्लीबाबा ने अपने शान व अभिमान के नशे में छोटी सी गलती पर भी कई नौकर-चाकरों के समेत कुछ लोगों की खटिया खड़ी करने के साथ ही काम तमाम कर देते थे।

इस प्रकार टल्लीबाबा के यहाँ भूत-प्रेतों का डेरा जम गया था। जो रात में कई प्रकार के डरावनें आवाज़ निकालते रहते थे। कई बार इन भूत-प्रेतों ने काली अंधेरी रात में टल्ली बाबा के परिवार की जवान बहु-बेटियों की खटिया ले जाकर गाँव के खाँड़ (मरघट) पर रख देते थे।

सुबह नींद खुलने व शोरगुल मचाने के बाद ही टल्ली बाबा के बहु-बेटियों की खटिया खाँड़ से घर आता था।

वैसे खटिया से अपना उल्लू सीधा करना कोई छटंकी बाबा के लुगाई से सीखे। छटंकी बाबा की लुगाई ने शहर के बीचो-बीच तीन तल्ला झूमका के लिए खटिया खड़ी कर दी थी। छटंकी बाबा के लाख मिनती करने के बाद भी टस से मस नहीं हुई थी। अन्तोगतवा छटंकी बाबा को अपने लुगाई के लिए तीन तल्ला झूमका खरीदना ही पड़ा था तब जाकर उनकी लुगाई ने खटिया गिराई थी। इस प्रकार छटंकी बाबा का मान-सम्मान बाल-बाल बचा था।

आपसी तु तु-मैं मैं में भी लोग एक-दूसरे की खटिया खड़ी करने की बात करते रहते हैं, जैसे खटिया खड़ी करने के साथ ही मचिया उठा लेंगे और विजयध्वज फहरा लेंगे। कभी-कभी तो लोग अंतिम संस्कार में भी खटिया समेत मरघट पहुंचा देते हैं।

कहते हैं कि जमींदारी प्रथा में लगान न देने पर जमींदारों के कारिंदे ढेंका-जाँत उखाड़ने के साथ ही खटिया भी उठवाकर जमा कर लेते थे तथा लगान का रसुमअदायगी करने पर ही ढेंका-जाँत समेत खटिया वापस करते थे।

वैसे खटिया के बिना कभी-कभी जीवन अधूरा ही रहता है। नन्हकू दादा कहते थे कि रामलाल की लुगाई इस बात पर रूठकर मायके चली गई थी कि रामलाल ने अपने गरीबी के चलते लुगाई के लिए खटिया के आकार का एक छोटा खटोला नहीं बनवा पाया था। रामलाल और उसकी लुगाई ने पूरा जीवन नदी के दो किनारों की तरह बीता दिया था परन्तु खटोला न बन पाने के कारण दोनों का पुनःमिलन न हो सका था।

हमारा बचपन भी खटिया के खटोले में आराम फरमाते हुए बीता है। खटिया के बीच में झूलना और खटिया को धूप में डालकर पटक-पटक कर खटमल निकालना, मारना व ऊँड़सना किसी निशानेबाज शिकारी के तीरअंदाजी से कम न था।

वैसे हमारे लंगोटिया मित्र यादवजी भी खटिया के खेल के माहिर खिलाड़ी हैं। यादवजी अपने पहलवानी के दिनों में कई लोगों के खटिया का ऊनचन ठीक किया था।

एकबार तोऽ चम्पाबाई के खटिया का ऊनचन ठीक करते समय,, ताव में आकर मूँछों पर हाथ फेरते हुए यादवजी ने चम्पाबाई के सामने ही अपने खटिया खेल के कला का मंचन करने लगे थे। यादवजी ने खटिया को गेंद जैसे नचाते हुए तिरछा खड़ा करके एक हाथ में लेकर मुँह के दाँत पर टिका कर अरईया-परईया किया था।

इस कला को देखकर चम्पाबाई बहुत प्रसन्न हुई थी तथा यादवजी को सुर्ती का बिठई पुरुस्कार स्वरूप भेंट की थी। जिसे यादवजी आज भी किस्से व कहानियों के रूप में बड़ी चाव से सुनातें हैं। चम्पाबाई भी यादवजी के खटिया खेल के मंचन को जीवन पर्यन्त नहीं भूल पाईं थी।

कहतें हैं कि बीरबल ने भी धूप-छाँव के प्रतियोगिता में मुगल बादशाह अकबर के राज दरबार में खटिया ही पेश किया था। जिसके सामने एक से एक धुरंधर राजदरबारी चित् हो गये थे तथा प्रतियोगिता के विजय का सेहरा बीरबल के माथे बांधा गया था। जो आज भी किस्से-कहानियों में पढ़ने-सुनने को मिलता है।

व्यक्ति के जीवन में खटिया का बड़ा महत्व है। खटिया घर में हो या दरवाजे पर सही स्थिति में है तोऽ जीवन में खुशहाली ही खुशहाली है।
अतः खटिया को खाली समय में लोहें के खम्भे के साथ जंजीर से बांधकर ही रखना उत्तम है ताकि कोई गुंडा-बदमाश या प्रतिद्वन्दी को किसी का खटिया खड़ी करने से पहले सौ बार सोचना पड़े।

त्रिवेणी कुशवाहा ‘त्रिवेणी’
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