बैसाखी: सोनल ओमर

लहलहाती फसलों में बहार है।
मानो धरती ने किया श्रृंगार है।
आया बैसाखी का पर्व सुनहरा
यह कृषकों का त्यौहार है।।

किसान का खेतों में बीज बोना।
था धानी चुनर ओढे हर कोना।
आज भंगड़ा और गिद्दा पाओ
फिर धरती ने उगला है सोना।।

औजारों की कर लो सफाई।
दांती पकड़ शुरू करो कटाई।
झूमों-नाचों अन्न भण्डार भरेंगे,
बैसाखी आई, बैसाखी आई।।

आज ही घटी-घटना कायरता की भी थी।
निर्मम कहानी जलियांवाला बाग की थी।
बैसाखी पर उपस्थित बेकसूर निहत्थों पे,
क्रूर जर्नल डायर ने गोली फायर की थी।।

बैसाखी पर खालसा पंथ रचाया।
गुरु ग्रंथ साहिब की जोत जलाया।
आनन्दपुर में अपने पाँच प्यारो को,
गुरु गोविंद जी ने अमृतपान कराया।।

घर को रोशन कर रंगोली से सजायेंगे।
हम सब मिल-जुलकर नाचेंगे गाएंगे।
सभी स्वस्थ रहे प्रभु से कामना करके,
ढोल बजाकर संग संग गिद्दा पाएंगे।।

सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश