दास्तां दिल की: प्रार्थना राय

इक बार पूछी शाम से
बताओ ना जरा, बताओ ना जरा
रात में ठहरती हो कहाँ

हाथ थाम मेरा
मुस्कुरा कर कही
दास्तां दिल की सुन मेरी सखी

सूरज के ताप संग
दिन भर मैं सोयी
ढ़ल गयी रौशनी, मैं नींद से जगी

मस्त घटा रेशमी
केस की कसम
मैं हूँ वहीं सखी जहाँ लट तेरे खुले हुए

हौले-हौले बहती
पवन से जा कही
ले चल वहां जहाँ मन मेरा बसा

जुगनुओं की चमक संग
नभ में सजी
सितारा बन के तेरे आँचल में जड़ी

मस्त-मस्त नयनों में
घुल गयी सखी
सोमरस का प्याला बन छलक गयी सखी

चंद्रमा की चाँदनी से
जा गले मिली
चंद्रमा के साथ मैं रात भर जगी

बेताब दिल की धड़कनें
भोर में थमी
नींद भरी आँखों में वहीं मचल गयी

तरूणाई लिए लालिमा
फिर रौशनी हुई
सुबह के आगोश में मैं जा सोयी

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश