प्रेम नेह के धागे: प्रार्थना राय

भोर किरण की खिली अरुणिमा
लाली आँचल पर छायी
खिले सरोवर बीच कमल
वसुधा पे छायी तरुणायी

होत भिनसार करूं प्रतीक्षा
तुलसी मध्य दीप जलाऊँ
चन्दन हल्दी से रच-रच
आँगन चौक पुराऊँ

खोलो मन का द्वार प्रियतम
तुमसे मिलने आयी
अलकों पर जला दीया
आरती करने आयी

कनक कटोरा भर माखन
मिश्री साथ में लायी
छिन-छिन तोहे भोग लगाकर
मंद-मंद मुस्काऊँ

बागों-बागों घुमर-घुमर
चुन के कलियाँ लायी
प्रेम नेह के धागे में
कोमल पुष्प पिरोयी

कण-कण में बसते हो गोविंद
सजल हृदय पर छाओ
सतरंगी स्वप्न नयन में
क्षणभर में आ जाओ

तन कस्तूरी बन महक रहा
मन भी मेरा मचले
मैं व्याकुल बन सुरभि
रोम-रोम ढूँढ रहा तोहे

अँजुरी भर-भर स्नेह लुटाऊँ
कलिका हार पहनाऊँ
सदैव ऋणी मैं तेरी कान्हा
चरणों की धूल जो पाऊँ

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश