युद्ध और प्रेम: मीरा कृष्ण

युद्ध के लिए वीरों को
विदा करती नाज़ुक औरतें
लक्ष्मीबाई या दुर्गावती से
क़तई कमजोर नहीं होती

युद्ध लड़कर मर जाना
कहीं आसान रहता होगा
बजाय इसके कि
युद्ध में अपनी ज़िंदगी गँवाकर
ज़िंदा रह जाना
और योद्धा की बची हुई रियासत को
उसी शान और बान से संचालित करना

ज़ेहन में उदास यादें
और चेहरे पर उत्तरदायित्व का बोझ
थककर भी
थकना शब्द से हर पल लड़ते रहना
और हर रात
जीत की मुस्कान के साथ
अधखुली आँखों से सो जाना
कहीं अधिक दूभर है 

युद्ध के बाद
योद्धा की पत्नियों का ज़िंदा रह पाना
प्रेमिकाएँ भी
कुछ इसी तरह की जद्दोजहद में जीती हैं
अपने प्रेमी के जाने के बाद

मीरा कृष्ण

परिचय-
सरला सोनी ‘मीरा कृष्णा’
वरिष्ठ शिक्षक
जोधपुर, राजस्थान

प्रकाशन-
महकते पन्ने,शब्द-शब्द महक, क्षितिज की ओर, पथरीले तट पर,राज-दर-राज, चाँद अधूरा, विवान, काव्य-सृष्टि, सृजन अभिलाष, चिरंतन, सृजन सुगंध,शब्द स्पंदन, काव्य-धारा तारूष (साँझा काव्य संकलन) तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित 

सम्मान-
नर्मदा प्रकाशन और युवराज प्रकाशन से रचनात्मक योगदान हेतु सम्मान, सम्राट अशोक मानव कल्याण एवं शिक्षा समिति (साहवेस) कानपुर, उप्र द्वारा प्रशस्ति पत्र।