प्रतीक्षा के घावों पर: स्नेहलता नीर

पिया गए परदेश न लौटे, अब तक मन अकुलाए।
चिंतन में पीड़ा के बादल, लौट-पौट गहराए

विरह-ज्वाल सुलगाती साजन, रूठी निंदिया रानी।
तारे गिनती रात बिताती, मेरी प्रेम कहानी।।
समय, प्रतीक्षा के घावों पर, हर दिन नमक लगाए।
चिंतन में पीड़ा के बादल, लौट-पौट गहराए।

खुशियों की बारात सजीली, संग तुम्हारे,हो ली।
पथ निहारतीं रहीं तुम्हारा, विरहिन अँखियाँ भोली।।
साँसें हुईं धौंकनी प्रियतम, सावन आग लगाए।
चिंतन में पीड़ा के बादल, लौट-पौट गहराए।।

मुखड़ा मुरझाया तन पिंजरे, की अभिलाष अबोली।
आशाओं से खेल रही है, दुविधा आँख-मिचोली।
काल अहेरी क्या जाने कब, मुझे उठा ले जाए।
चिंतन में पीड़ा के बादल, लौट-पौट गहराए।

वासंती मौसम ने पथ पर, काँटे खूब बिछाए।
पावस की बौछारों ने भी, अंगारे बरसाए।।
कब आओगे श्याम साँवरे, नेह-गेह घबराए।
चिंतन में पीड़ा के बादल, लौट-पौट गहराए।।

स्नेहलता नीर