संभालकर रखा है अश्क़: रवि प्रकाश

टूटे हुए शीशे में तस्वीर सजाई नहीं जाती
टुकड़े हुए दिल में मुहब्बत बसाई नहीं जाती

कहकर अपना फिर कैसे गैर सा काम करें
नसीहतें कुछ भली हमसे भुलाई नहीं जाती

उन्हें हक है समझ लें चाहे जो भी हमें यारों
हस्ती खुद्दारी की हमसे मिटाई नहीं जाती

रूठना वाजिब है दिलबर तेरा अपनी जानिब
ग़मज़दा कर किसी को खुशी पाई नहीं जाती

संभालकर रखा है अश्क़ अब भी खुद के लिए
अपनों की खुशी आँसुओं में डुबाई नहीं जाती

सहेजा है जतन से हमने मुस्कान के कफन में
हर हसरत यूँ ही तो सबको बताई नहीं जाती

अँधेरों का काम ही रहा प्रकाश को मिटाना
सबकी राहों में मगर नजरें बिछाई नहीं जाती

रवि प्रकाश
जबलपुर,मध्य प्रदेश