आप बीती जग बीती-मुकेश चौरसिया

बस बेबस
“सुनो जी क्या मैंने आपको अपने बस में करके रखा है”?
पेपर सामने से हटाकर मैंने अपनी पत्नि ओर देखा। आ…हा…हा…. क्या रूप था। बिखरी हुई जुल्फें, कमर में खोंसी हुई साड़ी, आँखों में गुस्से की लाली, तमतमाया हुआ चेहरा, एक हाथ में झाड़ू दूसरे में कचरा उठाने का सूपा।
ये वो छवि थी जिसको देखकर मेरे अंदर खतरे का अलार्म बज उठा। बटुआ काँप उठा। हम दोनों की शामत आई।
“क्या हुआ? क्या बात हो गई? बस में तो कर ही रखा है”, मैंने बेमतलब रोमांटिक होते हुए कहा “लाओ ये झाड़ू और सूपा मुझे दे दो। मैं तो बस पेपर देखकर जरा सा यूँ ही बैठ गया था”।
“देखो जी बात टालने की कोशिश ना करो। कल शादी में छोटी ननद जी कह रही थीं कि मैंने तो भैया याने आपको पूरी तरह से बस में करके रखा है।“
“बताईये क्या मैंने आपको सचमुच बस में करके रखा है”?
“नहीं, नहीं ये भी क्या बात हुई”। स्थिति की गंभीरता को भाँपते हुए मैंने सचमुच गंभीर होने की कोशिश की।
“फिर भला ननद जी ने ऐसा क्यों कहा”?
“पूछना पडे़गा गुड़िया से, उसने ऐसा क्यों कहा”
“तो अब आप ननद जी से पूछेंगे”?
“नहीं मेरा मतलब वो नहीं था” – मैं घबराया।
“मेरी ऐसी किस्मत कहाँ जो मैं आपको बस में कर पाती। इससे अच्छी किस्मत तो मेरी भाभी की है, और बस में करना सीखना हो तो कोई ननद जी से सीखे कैसे वो नंदोई जी को अपनी अंगुलियों पर नचाती हैं। मेरी ऐसी बदनामी हो रही है और मुझे पता ही नहीं चला” -स्वर अब और रुआँसा होने लगा था।
“अच्छा मुझे क्या करना है ये बताओ”?
“सब आपका ही किया धरा है, अच्छा एक बात बताओ”
“पूछो”
“ये जो तुम रोज-रोज किचन में सब्जी काट के कुकर लगा के दाल चावल पका देते हो, क्या इसे बस में करना बोलते हैं”?
“नहीं, जानेमन नहीं।”
“अच्छा संडे की संडे मशीन लगा के कपड़े धो लेते हो, क्या इसे बस में करना बोलते हैं”?
“नहीं, स्वीटहार्ट नहीं”।
“ये जो रोज रोज चिटू-पिंटू के टिफिन तैयार कर देते हो, क्या इसे बस में करना बोलते हैं?
“नहीं, डार्लिंग नहीं”।
“कभी कभार शॉपिंग करा लाते हो क्या, इसे बस में करना बोलते हैं”?
“नहीं, जानू नहीं”।
“महीने में तीन बार किटी पार्टी में छोड़ते-लाते हो, क्या इसे बस में करना बोलते हैं”?
“नहीं, जान नहीं”।
“नहीं, जानेमन नहीं।”
“नहीं, स्वीटहार्ट नहीं”।
“नहीं, डार्लिंग नहीं”
दोस्तों लेख अभी खत्म नहीं हुआ है, आज संडे है झाडू पौछा कर लूँ, कुकर लगा दूँ, मशीन में कपडे डाल दूँ, मैडम को चाय दे दूँ, फिर आप बताइयेगा कि क्या सचमुच मेरी बीवी ने मुझे बस में कर के रखा है या उसे वहम है ?
देखिए सच सच बताइयेगा, छुपाइयेगा नहीं।

टीप‌‌‌:-
(आदरणीय सम्पादक जी, इस लेख में जो बार-बार ‘बस’ लिखा है, मैं जानता हूँ कि वहाँ-वहाँ ‘वश’ होना चाहिए था लेकिन जो मेरी बीवी ने कहा है मेरे लिए वही सच है। धन्यवाद।)

-मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी,
केवलारी, जिला‌- सिवनी