मुहब्बत हो अगर दिल में तो- स्नेहलता नीर

कभी तलवार के वारों से, बख्तर टूट जाता है
मुहब्बत हो अगर दिल में तो, ख़ंजर टूट जाता है

वफ़ा करके मिले जब बेवफ़ाई और रुसबाई
हृदय भी काँच के जैसा छिटक कर टूट जाता है

ग़रीबी भूख लाचारी बढ़े ऊपर से महँगाई
भले फ़ौलाद दिल इंसां हो, अक्सर टूट जाता है

बहाए काव्य सरिताएँ भले ख़्वाबों ख़यालों में
दिखें जब जुल्म के मंज़र, सुखनवर टूट जाता है

मिलन के वास्ते जब अब्र से धरती हुई व्याकुल
गरज करके बरस करके ये अम्बर टूट जाता है

मिलें ख़ुशियों के पल रुख़सार खिल गुलज़ार हो जाते
बढ़े जब दर्दे दिल, अश्कों का सागर टूट जाता है

लगे आज़ार है जब बदगुमानी का किसी को भी
भले हो स्वर्ग से सुंदर मगर घर टूट जाता है

जहां की दौलतें पाना तो इतना ठोस मत बनना
किसी मज़लूम की आहों से पत्थर टूट जाता है

दुलारा मुल्क़ की करता निगहबानी है सरहद पर
शहादत देख कर उसकी सितमगर टूट जाता है

ज़मीं से है फ़लक तक नाम रौशन नीर जिसका भी
शिकस्ता-फाँस जब चुभती सिकन्दर टूट जाता है

-स्नेहलता नीर