नज़र मिलाने लगे हैं: सलिल सरोज

जब से आईने से नज़र मिलाने लगे हैं
अपनी ही बातों से वो उकताने लगे हैं

अपने भी घर में जब होने लगा हादसा
वाइज़ नफरत की दीवार गिराने लगे हैं

अकेलेपन से जब घिर गए हर ओर से
फिर अपने पराए सबको मनाने लगे हैं

मन्दिर मस्जिद से जब बात नहीं बनी
तब इन किताबों से धूल हटाने लगे हैं

सब दंगे- फसाद जब हो गए नाकाम
बातचीत को समाधान बताने लगे हैं

समझे जब देश बना है हर आदमी से
तो हर इंसान को इंसान बताने लगे हैं

सलिल सरोज
नई दिल्ली