वो बेचारी ही है साहब: अभिषेक कुमार अग्रहरि

मानव जीवन में परिवर्तन ही परिवर्तन है, इसमें कोई संदेह नही है। जैसे-जैसे दुनिया परिवर्तित हो रही है, वैसे-वैसे मानव जीवन की सोच के तरीके में भी बदलाव आपको देखने में मिल रहा है।
पर इन सब के बीच आप  एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज खो दे रहे वो है एक लड़की की इज्जत या आप यूँ कह सकते है, ‘एक बेचारी लड़की’।

वो बेचारी ही है साहब, जिसको आप चौराहे पे घूरते है,

वो बेचारी ही है साहब, जिसके कपड़े को आप ध्यान से देखते हैं,

वो बेचारी ही है साहब, जिसके गली में आप रोज चक्कर लगाते हैं,

वो बेचारी ही है साहब, जिसको आप जान बूझकर स्पर्श करके गुजर जाते हैं,

वो बेचारी ही है साहब, जिसके मोबाइल नंबर के लिए इधर उधर चक्कर लगाते हो,

वो बेचारी ही है साहब, जिसके स्कूल जाने का समय अपने कार्य करने से ज्यादा महत्वपूर्ण समझते हो,

वो बेचारी ही है साहब, जिसके पास जाकर टिप्पणी करके निकल लिया करते हो,

वो बेचारी ही है साहब, जिसके एक मुस्कान को आप कुछ और समझ लेते हो,

वो बेचारी ही है साहब, जिसको गंदी शब्दो से पुकार कर चले जाते हो,

वो बेचारी ही है साहब, जिसको ऑटो में बगल वाली सीट पे बैठ कर अजीब तरीके से स्पर्श करते हो,

वो बेचारी ही है साहब, जिसको देखकर आपके  मन में केवल गलत ख्याल ही आया करते हैं,

वो बेचारी ही है साहब, जिसकी मदद करके आप कुछ और ही उम्मीद कर बैठते है, वो बेचारी कब तक रहेगी आखिर, जब तक वो क्या आत्मदाह न कर ले?

उस माँ पे क्या गुजरती होगी, जिसको अपनी बेटी को घर के ज्ञान देने से पहले ये बताना होगा कि तुम बाहर की दुनिया मे बस ‘एक बेचारी’ हो बिटिया।

अभिषेक कुमार अग्रहरि
मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश