पुरुष: प्रार्थना राय

पुरुष चरित्र की व्याख्या करना अत्यंत ही जटिल है। पुरुष की अनिवार्यता एवं उपस्थिति का वर्णन करना मेरे लिए आधे अधूरे वाक्य के समान है। क्योंकि पुरुष चरित्र पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है, प्रत्येक संबंधों की आशाओं पर खरे उतरने के साथ दिन रात एक कर के परिश्रम करते हुए खून और पसीने का उनके लिए कोई भेद नहीं रह जाता।

पुरुष के कंधे का कोई माप नहीं, हिमालय पर्वत के समान वृहद एवं विशाल, जिस पर लदे होते हैं जीवन के अनगिनत बोझ, पुरूष के सुख और दुख के मध्य के फासले को आंकना इतना आसान नहीं।

क्योंकि वह सदैव अरावली पर्वत के समान किसी भी परिस्थिति में खड़े रहने का साहस रखते हैं, स्वयं की परवाह किये बिना वह जीवन के गुलदस्ते को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, वह अपने खालीपन को किसी से कह नहीं पाते।

दूसरों की नसीहत को चुपचाप सुन लेते, दूसरे के जीवन को संभालने में अपना सारा जीवन निकाल देते हैं, कठिन से कठिन परिस्थिति में भी उनकी आंखों से आंसू नहीं गिरते।

पाषाण शिला समान हृदय में न जाने कितने असहनीय दर्द अपने अंदर सहेज रखने की कला को शायद एक पुरूष ही पोषित कर सकता हैं। वे रोते नहीं अपितु उनके हृदय अवश्य ही द्रवित होते हैं, वह कह नहीं पाते अपनी व्यथा किसी से और उन्हें कोई कंधा नहीं मिलता, जिस पर सर रखकर रो सके।

कभी पुत्र बनकर पिता का मान बढ़ाया, कभी पिता बनकर संतान की इच्छा पूर्ति हेतु दिन-रात एक किया, भाई, पति एवं अन्य संबंधों को निभाते हुए वह अपने आपको जीवन के प्रति समर्पित कर देता। स्वयं के कपड़े लत्ते खानपान एवं स्वास्थ्य के प्रति सदैव वह लापरवाह होते हुए  भी परिवार जन की एक छींक पर तुरंत दवाई के लिए दौड़ने लगते हैं।

पुरुष की धारणाओं को जान पाना इतना आसान नहीं, परिवार की खुशी के लिए वह अपनी बुनियादी जरूरतों को भी दरकिनार कर देते हैं। सभी कहते हैं पुरुष स्वतंत्र होते हैं, गलत हैं क्योंकि दूसरों की अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए भागम भाग में निकल जाती हैं पुरुष की जवानी।

मौसम जो भी हो वह कतरा-कतरा निचोड़ देता हैं अपने आप को, परिवार की खुशी के लिए। जीवन के व्याकरण में अपनी अहम भूमिका निभाने की प्रस्तावना को रचते हुए भी पुरुष पर लग जाता है प्रश्नवाचक चिन्ह?

दरअसल समझना आपको है, तमाम इच्छाओं की चक्की में पिसता पुरुष के चेहरे पर थकान होते हुए भी अपनों को देखकर मुस्कुराता है जबकि झलकती है उसके देह पर जिम्मेदारियों की बोझ। क्या पुरुष चरित्र को प्रमाणित करने के लिए शब्द की आवश्यकता है। क्यों ना हम उनकी जिम्मेदारियों एवं एहसासों के माध्यम से उन्हें समझें।

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश