दिल और दिमाग़ के तावाजुन का शायर सुभाष पाठक ‘ज़िया’: एएफ नज़र

Book review

शायरी अहसासात और ख़यालात को बयान करने का आर्ट है। मेरे ख़याल से ‘कला कला के लिए’ और ‘कला समाज के लिए’ दोनों ही इस्तिलाहें एक दूसरे की पूरक हैं। कोई भी आर्ट इसलिए हम है कि वह दिलों को सुकून तब बख्शती है। जब उसमें वे सब तरकीबें और अनासिर जो उसे आर्ट बनाते हैं।

या तो फ़ितरी हों या इस तरह इस्तेमाल किये जायें कि फ़ितरी महसूस हों निदा फ़ाज़ली साहब जब फ़रमाते हैं कि

‘औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त है बस्ती में
कुछ लोगों का भोलापन है कुछ अपनी अय्यारी है’

तो वे बड़ी ईमानदारी से ज़िन्दगी के एक सच को दुनिया के सामने रखते हैं। बिल्कुल इसी तरह एक सच यह भी है कि शायरी में दिल के मसअले दिमाग़ से हल किये जाते हैं। दिल और दिमाग़ का यह तावाजुन ज़िया भाई ने बख़ूबी संभाल रखा है।

हाल ही में शेरी अकादमी भोपाल से पब्लिश भाई सुभाष पाठक ‘ज़िया’ के शेरी मजमुए ‘दिल धड़कता है’ को पढ़ते हुए मुझे कुछ यही महसूस हुआ उनकी शायरी में इन्फ़िरादी उसलूब में कोई उंसूर ऐसा नहीं है जो आरज़ी महसूस हो या कमन्यूकेशन की राह में हाइल हो। एक ख़ास तरह की नगमगी उनके यहाँ देखी जा सकती है। जो कारीन की धड़कनों की हम आहंग होकर अहसास में मिठास खोल देती है। 

अल्फ़ाज़ के इंतिख़ाब और जुमलों के के रचाव में बहुत एहतियात से काम लेते हैं उनकी शायरी का कैनवास  वसीअ है। जो एक तरफ़ उर्दू की क्लासिक शायरी से मंसूब होता है। वहीं आज के हालात की बखूबी तर्जुमानी भी करता है। 

मजूमए से चंद अशआर-

कोई दामन कोई शाना होता
मेरे अश्कों का ठिकाना होता

वक़्त के साथ मैं चलूँ कि नहीं 
सोचता हूँ कि वफ़ा करूँ कि नहीं

ज़ख़्म ए जिगर को देख के हँसने लगी थी रात
बस इसलिए चराग़ बुझाना पड़ा मुझे

हमारा यार तो रहता है झील के उस पार
सदा जो आती है इस पार दिल धड़कता है

उम्मीद है कि उनकी काविश ‘दिल धड़कता है’ ग़ज़ल के चाहने वालों को पसंद आएगी।
नेक दुआओं के साथ 

एएफ नज़र
सवाई माधोपुर, राजस्थान