Friday, March 29, 2024
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अंतरराष्ट्रीय शांति के मार्ग में ड्रैगन का अतिक्रमण- मोहित कुमार उपाध्याय

हाल ही में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवान घाटी में अतिक्रमण को लेकर भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों में गहरा तनाव व्याप्त है। दोनों देश कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास कर रहे है। इससे जाहिर होता हैं कि चीन उस दौर में अपने आक्रामक तेवर बढा रहा हैं जब पूरी दुनिया चीन द्वारा थोपी गई कोरोना नामक महामारी के रूप में एक बड़े संकट का सामना कर रही है। इस घटना के विरोध में भारत ने चीनी मूल से जुड़े 59 मोबाइल एप को राष्ट्र की सुरक्षा, संप्रभुता एवं अखंडता का तर्क पेश करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा – 69ए के तहत प्रतिबंधित कर दिया।
आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे ज्यादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है। ऐसा माना जाता हैं कि इस रफ्तार से चलते हुए वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमेरिका से भी आगे निकल जाएगा। इस चिंता को ध्यान में रखते हुए एवं हिन्द प्रशात क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका ने भारत, आस्ट्रेलिया एवं जापान के साथ मिलकर एक चतुष्कोणीय गठबंधन तैयार किया है।
आर्थिक स्तर पर अपने पड़ोसी देशों से जुड़ाव के चलते चीन पूर्वी एशिया के विकास का इंजन जैसा बना हुआ हैं और इस कारण क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है।
1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीन ने अर्थव्यवस्था के साम्यवादी माॅडल को अपनाया। इस माॅडल में चीन ने औद्योगिक अर्थव्यवस्था का आधार खड़ा किया। विदेशी मुद्रा की कमी के कारण चीन ने आयातित सामानों को धीरे-धीरे घरेलू स्तर पर ही तैयार करवाना शुरू किया।
चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में कुछ बड़े निर्णय लिये। 1973 में चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई ने कृषि, उधोग, सेना और विज्ञान प्रौद्योगिकी के चार महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखें। 1978 में चीन के तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति की घोषणा की। चीन ने शाॅक थेरेपी के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से खोला।
नयी आर्थिक नीतियों के कारण उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही। व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निर्माण से उल्लेखनीय वृद्धि हुई। चीन पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा। आज के समय चीन के पास विदेशी मुद्रा का एक विशाल भंडार हैं और इसी के बल पर आज चीन दूसरे देशों में एक बड़े स्तर पर निवेश के कार्यों में जुटा हुआ है।
चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया और इस संगठन के कमजोर कानूनों, सस्ता श्रम और कुशल एवं मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था के कारण विश्व के बाजारों को चीनी सामानों से भर दिया।
अब चीन की योजना विश्व अर्थव्यवस्था से अपने जुड़ाव को और मजबूत बनाना हैं ताकि भविष्य में वह विश्व व्यवस्था को मनचाहा रूप दे सकें। इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाते हुए चीन अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट, वन रोड को यथार्थ के धरातल पर उतारने की कोशिश में लगा है।
इस परियोजना के माध्यम से चीन दुनिया की लगभग साठ फीसदी आबादी को अपने साथ जोड़ने के प्रयास में संलग्न है, जिससे एक ग्लोबल सप्लाई चेन की मजबूत नींव तैयार की जा सकें।
इस संदर्भ में चीन द्वारा अप्रैल, 2017 में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें 29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष, 70 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख, दुनिया भर के 100 मंत्रिस्तरीय अधिकारी और विभिन्न देशों के 1200 प्रतिनिधिमंडल उपस्थित हुए थे। अमेरिका और पाकिस्तान भी इसमें शामिल हुए परन्तु भारत ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज की।
दरअसल चीन द्वारा निर्मित किया जा रहा चाइना पाकिस्तान इकोनोमिक काॅरिडोर पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजर रहा है, जोकि भारत का अभिन्न अंग है। इस पर भारत यह दावा कर रहा हैं कि चीन का यह कदम भारत की संप्रभुता एवं अखंडता का उल्लघंन कर रहा है।
उल्लेखनीय हैं कि यदि चीन वन बेल्ट, वन रोड रूपी अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को अमलीजामा पहनाने में सफल रहता है, तो दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बिगड़ जाएगा और यह भारत के लिये हानिकारक सिद्ध होगा।
चेक एंड बैलेंस पॉलिसी को उपयोग में लाते हुए चीन भारत के पड़ोसी देशों में, निहित स्वार्थ के कारण कारण आर्थिक विकास का लालच देकर, भारी निवेश कर रहा है। जिसका हालिया उदाहरण हैं- नेपाल द्वारा भारतीय विरोध के बावजूद तीन भारतीय क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी और लिंपियुधरा को संवैधानिक संशोधन के माध्यम से अपने देश के नक्शे में जगह प्रदान करना।
चीन म्यांमार और श्रीलंका में विशेष रूप से बंदरगाह बनाने में निवेश कर रहा है। वहीं भारत के सदाबहार मित्र बांग्लादेश में भी अपनी पैठ बनाने के लिए प्रयास कर रहा है। जिसका ताजा उदाहरण हैं- बांग्लादेश में उत्पादित 97 फीसदी वस्तुओं को चीन में शुल्क मुक्त प्रवेश।
1997 में ब्रिटेन द्वारा चीन को हांगकांग इस शर्त के साथ सौंप दिया गया था कि वह उसकी स्वायत्तता बनाए रखेगा, परंतु गत वर्ष हांगकांग में स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र की बहाली के लिए हुआ हिंसक आंदोलन इस बात का गवाह हैं कि चीन अपनी साम्राज्यवादी मानसिकता के कारण हांगकांग की स्वायत्तता समाप्त करना चाहता है। वहीं चीन सैनिक बल के सहारे तिब्बत पर भी अवैध कब्जा जमाए बैठा है। इस पर भारत की सबसे बड़ी गलती यह है कि वह तिब्बत को चीन के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करता है।
चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा का लगातार उल्लघंन किया जा रहा है। चीन ने विश्व के अधिकांश देशों के साथ सीमा विवाद सुलझा लिया है, जबकि भारत के साथ यह विवाद अभी भी बना हुआ है। चीन विश्व के समक्ष यह प्रदर्शित करना चाहता हैं कि सीमा विवाद का समाधान न हो सकने का मूल कारण भारत है।
भारत चाहता हैं कि सीमा का समाधान सेक्टर के अनुसार होगा, वहीं चीन पैकेज डीलिंग पर बल दे रहा है। चीन अरुणाचल प्रदेश सहित 90,000 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्रफल पर अपना दावा प्रस्तुत कर रहा है।
चीन का लंबे समय से आसियान देशों के साथ जिनमें वियतनाम, ब्रूनेई, फिलीपींस और मलेशिया हैं, दक्षिण चीन सागर में स्थित स्पार्टले और पारासेल द्वीप को लेकर विवाद चल रहा है। चीन ने इन एशियाई देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अतिक्रमण कर वहां अपनी संप्रभुता के दावों के लिए 9 स्थानों पर डैश लगाकर विवाद बढा दिया हैं। चीन दक्षिण चीन सागर में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों, प्राकृतिक तेल, गैस मत्स्य संसाधनों पर कब्जा करना चाहता है।
चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर में स्थित द्वीपों में सैनिक अड्डे के निर्माण का प्रयत्न किया जा रहा हैं और चीन ने इन द्वीपों पर एक हवाई पट्टी भी बनाई है।
हाल ही में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ मिलकर अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायलय द्वारा दक्षिण चीन सागर के विवाद पर फिलीपींस के पक्ष में दिये गये निर्णय का त्वरित क्रियान्वयन होना चाहिए।
इस मामले में न्यायालय के निर्णय की अव्हेलना करके चीन हठधर्मिता के साथ दावा कर रहा हैं कि यह समुद्री क्षेत्र का विवाद नहीं हैं, बल्कि चीन की भौगोलिक संप्रभुता का मुद्दा हैं, जिस पर न्यायाधिकरण निर्णय नहीं दे सकता है।
भारत और चीन दोनों की अर्थव्यवस्थाएं प्रतिस्पर्धी हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में दोनों समान वस्तुओं का निर्यात करते है। भारतीय मंत्रालय के अनुसार, चीन द्वारा आयातित वस्तुओं से भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
चीन वर्तमान में भारतीय उत्पादों का तीसरा बडा निर्यात बाजार है। वहीं चीन से भारत सबसे ज्यादा आयात करता हैं और भारत, चीन के लिए एक उभरता हुआ बाजार है। भारत चीन द्विपक्षीय व्यापार के संदर्भ में वर्ष 2019 में भारत ने चीन से 75 अरब डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था जबकि इस दौरान भारत ने चीन को सिर्फ 18 अरब डॉलर की वस्तुओं का निर्यात किया। स्पष्ट हैं कि भारत को 57 अरब डाॅलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा। इससे बचने के लिए भारत को चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करनी होगी। इसके लिए घरेलू स्तर पर कच्चे माल की उपलब्धता के साथ उत्पादक गतिविधियों में बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है। भारत को ईज आॅफ डूइंग बिजनेस से जुड़े नियमों को सरल बनाए जाने की आवश्यकता हैं। इसके अलावा इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा नौकरशाही के ढीले-ढाले रवैये को एक नया आयाम प्रदान किया जाना चाहिए।
यह सर्वविदित हैं कि डब्लूटीओ के अधीन भारत चीनी या अन्य किसी देश की वस्तुओं के आयात पर प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकता हैं, परन्तु परोक्ष से आयात शुल्कों में वृद्धि करके या सुरक्षा मानक के आधार पर ऐसी प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की जा सकती हैं।
यह एक चिंतनीय पहलु हैं कि भारत में श्रम सस्ता होने के बावजूद उत्पादन लागत चीन के मुकाबले इतनी अधिक क्यों है! सरकार को इस दिशा में व्यापक विचार विमर्श करके ठोस उपाय किये जाने चाहिए ताकि वर्षों पुरानी इस समस्या का व्यापक समाधान करके आत्मनिर्भर भारत के मार्ग की इस सबसे बड़ी बाधा को दूर किया जा सकें।
चीन के द्वारा पाकिस्तान में बडा निवेश किया जा रहा है। चीन, पाकिस्तान का बचाव वीटो पावर के बल पर सुरक्षा परिषद में भी करता हैं। वर्तमान समय में चीन द्वारा गिलगिट बाल्टीस्तान क्षेत्र में सेना की तैनाती भारतीय सुरक्षा के लिए एक नवीन चुनौती हैं। कराकोरम राजमार्ग के माध्यम से चीन अपनी सामरिक स्थिति को और सुदृढ आधार प्रदान कर रहा हैं। भारत को घेरने के लिए चीन के द्वारा पाकिस्तान के ग्वादर पत्तन का विकास किया गया हैं ताकि ग्वादर पत्तन से पाकिस्तान को चीन से जोड़ा जा सकें।
वर्तमान में चीन द्वारा दक्षिण एशिया में भारत को घेरने के लिए पड़ोसी कार्ड की नीति अमल में लायी जा रही हैं जो भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी एवं नेबरहुड फर्स्ट की नीति के लिए संकट का कारण बन सकती है।

-मोहित कुमार उपाध्याय
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

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