बेटियों की व्यथा: सोनल ओमर

उसने अभी जीवन के 19 बसंत ही तो देखें थे। अभी अभी तो उसे पता चला था कि लाल गुलाब जीवन को उमंगों से भर देता हैं। अभी अभी तो उसे पता चला था कि जीवन कितना हसीन हैं, आकाश मे झिलमिल सितारे उसके आँगन मे भी उतरेंगे जब बापू उसका ब्याह रचा देगा।

कल ही तो उसने सुना था दरवाजे के पीछे छुपकर जब बापू माँ से कह रहे थे कि बिटिया अब सयानी हो रही हैं उसके ब्याह की तैयारी कर लो। पूरी रात हसीन ख़्वाब देखें थे उसने बिना पलके झपके।

उनिदी पलकों पर ख्वाबो का बोझ लिए वो सुबह खेत मे गई थी माँ के साथ। माँ घास काट रही थी और वो उसको इकठ्ठा कर रही थी पीछे-पीछे….अचानक ये क्या हुआ जैसे किसी ने पीछे से खींचा हों। कुछ समझ पाती उस से पहले ही उसने देखा कि वो चार दरिंदों की गिरफ्त मे थी…। भूखे भेड़िये की तरह वो उसपर टूट पड़े थे।

असहनीय पीड़ा से वो कराह रही थी और उनकी हवस ज्यादा राक्षस रूप लेती जा रही थी। जिस जीभ से वो चिल्ला रही थी, उस जीभ को वो अपने दांतों से काट रहे थे और तब तक काटा जब तक कि वो मुह से अलग हो कर नीचे नहीं गिर गयी। गर्दन की हड्डी को तोड़ दिया और रीढ़ की हड्डी के टुकड़े टुकड़े कर दिये और अंत मे मरी हुई समझ कर छोड़ गए।

पंद्रह दिन तक सरकारी अस्पताल के खेराती बेड पर पड़ी रही लेकिन किसी ने खबर तक नहीं ली, किसी टी.वी. चैनल ने उसकी खबर को नहीं दिखाया। वो सब ये दिखाने मे लगे थे कि कौन सी हेरोइन कोनसा नशा करती हैं।

कल जब वो जिन्दगी की जंग हार गयी तो पुलिस ने रात के 2:30 बजे उसका अंतिम संस्कार कर दिया। उस अभागिन को अपनो का कंधा भी नसीब नहीं हुआ।

वहीं दूसरी ओर एक छात्रा जो वकील बनने के ख्वाब देख रही थी को दरिंदो की दरिंदगी का शिकार होना पड़ा। वो सुबह 10 बजे एक निजी महाविद्यालय में दाखिला लेने की बात बताकर घर से निकली थी।

मां ने बताया कि देर शाम तक नहीं लौटे पर उसकी तलाश शुरू की। इसी बीच छात्रा हाथ-पैर टूटी, बदहवास एवं गंभीर हालत में घर पहुंची। उसने परिजनों को आपबीती सुनाई कि किस प्रकार उसे दो लोग जबरन गैसड़ी बाजार में अपने घर ले गया। जहां उसे नशीला इंजेक्शन देकर उससे दुष्कर्म और दरिंदगी की।

उसे निजी चिकित्सक को दिखाया गया। हालत गम्भीर होने पर लखनऊ भेजा जा रहा था जहाँ रास्ते मे ही उसकी साँसों ने उसका साथ छोड़ दिया। इस बेटी का भी आधी रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया।

आये दिन इस तरह की घटना सोचने पर मजबूर करती है कि कहाँ जा रहा हैं हमारा समाज? क्या लड़की होना इतना बड़ा गुनाह हैं कि उसके शरीर को गाजर मूली की तरह खा जाए कोई भी?

अभी तक लगता था कि देर हो रही है, लेकिन अब तो अंधेर हो रहा है। दुःखद है कि समाज में पुत्रों को स्त्री जाति का सम्मान करना नहीं सिखाया जाता है।गालिया भी माँ बहनों की ही सुनाई देती हैं। गांव हों या तथाकथित शहरी पढ़ा लिखा युवा, हर वाक्य में गालियों का इस्तेमाल बेहिचक करता दिखाई देता है।

ऐसे समाज में बेटियां कहां सुरक्षित रह सकती हैं। जरा सोचिए कि हम किस तरह के समाज का निर्माण कर रहे है जहां बहू-बेटियाँ सिर्फ घरों में ही कैद होकर रह जायेगी, और एक समय आएगा जब वो घरों पर भी सुरक्षित नहीं रह पाएंगी। जरा सोचिए अगर ये आपके किसी अपने के साथ होता तो? इसीलिए अपनी आवाज को बुलंद करिए इन बेटियों के इंसाफ के लिए।

खून अगर बाकी है तुम्हारे जिस्म में,
तो खून अब खौलना ही चाहिए!
ज़ुबां में ना हो चाहे बिजली-सी कड़क
फिर भी बेहिचक बोलना चाहिए!
पुराने कानून से अगर कुछ नहीं हो रहा,
तो अवश्य ही इसे बदलना चाहिए!
जब बात आये लाज के लुट जाने की,
ना कर कृष्ण का इंतजार काली बन जाना चाहिए!
कर दो कलम सर, हाथ और लिंग को इनके,
कि इस बार सिर्फ मोमबत्ती नहीं जलना चाहिए!

सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश