डॉ मीरा रामनिवास वर्मा भारतीय पुलिस सेवा की वरिष्ठ अधिकारी रही हैं और इन्होंने साहित्य लेखन किया है। इसमें कविता, कहानी के अलावा यात्रा वृत्तांत और संस्मरण जैसी विधा में इनकी लिखी पुस्तके इस प्रसंग में पठनीय हैं। उनसे साहित्य लेखन के अलावा समाज व संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर उनके विचार प्रस्तुत कर रहे हैं राजीव कुमार झा…

भारतीय पुलिस सेवा में मेरा चयन 1985 में हुआ। इससे पूर्व मैं कालेज में संस्कृत की व्याख्याता थी। साहित्य के प्रति मेरी रुचि कालेज के समय से रही। स्नातक डिग्री मैंने हिंदी और संस्कृत साहित्य के साथ ली। अहमदाबाद के कार्यकाल के दौरान हिंदी साहित्य परिषद से जुड़ी और लेखन को वेग मिला। डॉ मीरा ने बताया कि मैंने काव्य लेखन से शुरूआत की, पुलिस सेवा में होने से बहुत से पात्र मुझे रोजाना मिलते थे, जिनपर कहानियां लिखी। अंकुर, एहसास की धूप, मौसम के साथ चलते हुए काव्यसंग्रह, स्मृतियों के दायरे, अक्षरा एवं अन्य कहानियां प्रकाशित की।खाकी मन की संवेदनायें किताब का सम्पादन किया।बालसाहित्य, यात्रा वृत्तांत और संस्मरण भी लिख रही हूँ।
डॉ मीरा कहना है कि संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत भाषा का पतन कभी नहीं हो सकता, आप ये कह सकते हैं कि ये आज आम बोलचाल की भाषा नहीं है। भारतीय संस्कृति का जो रूप आज देख रहे हैं, वह संस्कृत की देन है।हमारे वेद,पुराण रामायण गीता ही संस्कृति का मूल हैं। हिंदी संस्कृत की उत्तराधिकारणी है, संस्कृति को आगे बढ़ा रही है।
अपने बारे में बात करते हुये डॉ मीरा ने बताया कि मेरा जन्म राजस्थान के छोटे से गांव में हुआ, हमारा परिवार खेती बाड़ी और पशुपालन करता है। गांव में छोटा सा स्कूल हुआ करता था, दो साल वहीं पढ़ी, उसके बाद पास के कस्बे भुसावर से प्राथमिक शिक्षा, अलवर से स्नातक और जयपुर से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की।बचपन संयुक्त परिवार में खूब आंनद से बीता। माँ पिता का जीवन सादगी भरा था। माँ स्कूल नहीं गई थी किन्तु पिता दो चार साल गये थे, वे लिख नहीं पाते, किन्तु रामायण, कल्याण आदि पढ़ लेते हैं। मंै अपने परिवार की सबसे बड़ी सन्तान हूँ। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य के बहुत से रचनाकारों ने मेरी जीवन चेतना को प्रभावित किया। जिनमें जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, कबीरदास, तुलसीदास आदि हैं। जयशंकर प्रसाद ने अपनी रचना कामायनी में मानव मन के मनोभावों श्रद्धा, सुंदरता, लज्जा इड़ा को बहुत ही सुंदर ढंग से पात्रों के रूप में पेश किया है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की संवेदनशीलता (पूस की रात, गोदान) दिल को छू लेती है। कबीर एवं तुलसीदास ने समाज को नई दिशा दी है। इन सब की कालजयी रचनायें जीवन को चेतनता प्रदान करती हैं।
डॉ मीरा का कहना है कि संस्थागत ढांचा भले आज भी कमोबेश वही है, किन्तु आज शासकीय योजनाओं में अपनेपन का भाव है। शासक और शासित दोनों एक हैं। समाज में अशेष बदलाव आया है। सबसे बड़ी बात ये है कि शिक्षा के कारण व्यक्ति अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक हुआ है। क्षेत्रीय विशेषताओं को ध्यान में रखकर कानून बनाए गए हैं। दमन और शासन में कितना बड़ा फर्क होता है, हम सभी जानते हैं।
साहित्य में समाज और महिलाओं के मुद्दों पर बात करते हुये डॉ मीरा ने कहा कि साहित्यकार भी समाज में ही रहता है, इसलिए महिलाओं के जीवन से जुड़े मुद्दे सहज ही रचनाओं में समाहित हो ही जाते हैं। महिलाओं से संबंधित सभी सवाल जैसे भेदभाव पूर्ण व्यवहार, महिलाओं को अपनी संपत्ति मानना, उसके सौंदर्य को देह तक सीमित कर देना, उनके प्रति शारिरिक मानसिक हिंसा सभी महत्वपूर्ण हैं। चूंकि महिला होने के नाते से महिला साहित्यकार इन मुद्दों को अच्छी तरह से उजागर करती हैं। उन्हें नारीवादी लेखिका कह दिया जाता है, लेकिन इन लेखिकाओं के योगदान को समाज में कमतर नहीं आंका जा सकता है। मेरे मत में ये महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि गुजरात में कई दशकों से हिंदी भाषा बोलने वाले रहते हैं। गुजरात में हिन्दी का खूब बोलबाला है सभी हिंदी बोल समझ लेते हैं। हिंदी साहित्य अकादमी हिंदी साहित्यकारों को बढ़ावा देती है। हिंदी हमारी राज भाषा है भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। विश्व में चीनी भाषा के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी ने हम सब को जोड़ा हुआ है। हिन्दी साहित्य बहुत समृद्ध है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दी हमारी संस्कृति हमारी सोच की संवाहक है।
अपनी यात्रााओं के बारे में डॉ मीरा ने कहा कि यात्रा पर जाना मुझे बचपन से ही प्रिय रहा। उस समय जब ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें नहीं थीं, पिता के साथ पैदल ही नानी और बुआ के गांव जाना अच्छा लगता था। पुलिस सेवा के प्रशिक्षण के दौरान भारत दर्शन और ट्रेकिंग करने का अवसर मिला, उस समय मैं अपने अनुभव डायरी में लिखा करती थी। भारत के हर राज्य में प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना छुपा है।इसे देखना और लिखना दोनों ही आनंददायक हैं। विधिवत यात्रा लेखन पिछले दो साल से शुरू किया है। उन्होंने बताया कि मैंने फूलों की घाटी की सैर, डल झील एक चलता फिरता शहर, अमरनाथ यात्रा आदि यात्रा वृतांत लिखे हैं।
कविता पर बात करते हुये डॉ मीरा ने कहा कि काव्य लेखन बुद्धि से कम दिल से ज्यादा किया जाता है। संवेदनाओं का संप्रेषण हृदय से होता है। मेरी अभिव्यक्ति बहुत ही सरल और सहज है। प्रकृति के करीब रहना मुझे पसंद है। समाज में रहती हूं समाज के बदलते जीवन मूल्य, समाज की अच्छाईयां, विसँगतियाँ, प्रकृति की सुंदरता, नारी मन के सवाल सब मुझे सवेदनशील बना देते हैं और मेरी लेखनी को लिखने के लिए प्ररित करते हैं। मेरे लेखन में आदर्श कम यथार्थ ज्यादा अभिव्यक्त होता है। उन्होंने बताया कि पहले घरों में रामायण जैसे ग्रन्थों का सस्वर पाठ होता था, दादा दादी कहानियां, लोककथाएं सुनाया करते थे। स्कूल के बाद बच्चे बड़े बुर्जुगों के साथ बैठा करते थे। आज बच्चों का समय ट्यूशन, टीवी और मोबाइल में बीत जाता है। आज घरों में बाल साहित्य की किताबें भी उपलब्ध नहीं होती। पहले पढऩा और खेलना ही मनोरंजन था, अब बहुत से साधन उपलब्ध हैं। पहले हम छुट्टियों में खूब बाल साहित्य पढ़ते थे, लायब्रेरी से लाया करते थे। आज वीडियो गेम्स की सामग्री लाई जाती है। बाल साहित्य लिखा तो जा रहा है किंतु बच्चों पहुंच नहीं पाता है।
डॉ मीरा का कहना है कि भारतीय साहित्य की मूल चेतना उसका मंगल भाव है। भारतीय साहित्य में प्राकृतिकत, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक सभी चेतनाओं का समावेश है। मानवीय मूल्यों के प्रति चेतना का भरपूर समावेश किया गया है। भारतीय साहित्य में सत्यम शिवम और सुंदरम का पुट है। समय के साथ आज बदलते समाज और जीवन मूल्यों ने साहित्यकार के मन को भी छुआ है। लेखन शैली बदली है, लेकिन सामाजिक सरोकार वही है। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद की ऋचायें धरा पर उपस्थित जड़ और चेतन समस्त प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का बोध कराती है। हर वह वस्तु जो मानव को जीने में सहायक है, सबके प्रति मंगल कामना करना सिखाती हैं। जल, पृथ्वी, वायु, आग, सूर्य, चंद्रमा, वृक्ष सबको देव तुल्य मानकर आदर करना सिखाती हैं। माता पिता को देवता मान कर पूजा करने का आदेश देती हैं। मानवमूल्यों और संवेदनाओं की देन है ऋग्वेद। सँगच्छध्वम, संवद्ध्वम जैसी मानव कल्याण की चेतना प्रवाहित करती है। भारतीय संस्कृति मानव मात्र के कल्याण का संदेश देती है। दया, परोपकार, सत्य, अहिंसा, त्याग जैसे मानव मूल्यों का संदेश देती है। विश्व संस्कृति को भारत ने ज्ञान विज्ञान योग दर्शन चिंतन मनन और कर्म का सन्देश दिया है। भारतीय संस्कृति को जानने के लिए विश्व के देश संस्कृत भाषा और हिंदी भाषा सीख रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद किया जा रहा है और उन्हें पढ़ा जा रहा है।
डॉ मीरा का कहना है कि महात्मा गांधी के विचार गीता और रामायण से प्रभावित थे। उन्होंने अपने जीवन में सादगी सच्चाई सेवा स्वावलंबन अहिंसा निडरता जैसे भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांतों को अपना कर सबको आदर्श जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। गांघी जी हमारी संस्कृति के प्रणेता के रूप में सदा प्रासंगिक रहेगें। हमारी संस्कृति सादा जीवन उच्च विचार, मातृभूमि से प्रेम सिखाती है। गांधी जी ने इस पर हमेशा अमल किया।