माँ भारती तुझे हम ऐसी बहार देंगे, अपने लहू से तेरा दामन निखार देंगे: स्वावलंबन शब्द-सार की काव्य गोष्ठी आयोजित

स्वावलंबन ट्रस्ट के साहित्यिक प्रकोष्ठ, स्वावलंबन शब्द-सार की मासिक काव्य-गोष्ठी

माँ भारती तुझे हम ऐसी बहार देंगे, अपने लहू से तेरा दामन निखार देंगे। मधुर कंठ में जब स्वावलंबन ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रीमती मेघना श्रीवास्तव में अपने राष्ट्र-प्रेम को व्यक्त किया तो सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे।

अवसर था 24 नवंबर को स्वावलंबन ट्रस्ट के साहित्यिक प्रकोष्ठ, स्वावलंबन शब्द-सार की मासिक काव्य-गोष्ठी, जिसका आयोजन ऑनलाइन किया गया। राष्ट्र को समर्पित इस गोष्ठी में विभिन्न प्रदेशो से जुड़े  काव्य विभूतियों द्वारा विविध समसामयिक विषयों पर ओजस्वी, अनुपम, मार्मिक और समाज को आइना दिखाने वाले काव्य पाठ ने समां बाँध दिया।

गोष्ठी का शुभारम्भ स्वावलंबन शब्द-सार की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती परिणीता सिन्हा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया और श्रीमती शालिनी तनेजा नें अपने मधुर कंठ से माँ शारदे का वंदन किया। राष्ट्रीय सह-संयोजिका, भावना सक्सैना ने स्वागत संबोधन करते हुए कहा कि राष्ट्र हमारे अस्तित्व का मूल है, राष्ट्र से अधिक सामयिक किसी भी समय कोई और विषय नहीं हो सकता। आज जब संपूर्ण विश्व एक चुनौती का सामना कर रहा है, तो सबसे अधिक आवश्यकता सकारात्मक बने रहने की है।

संयोग से यह अवसर संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव के जन्मदिन का भी था तो सभी ने उन्हें शुभकामनाएँ देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। श्रीमती मेघना श्रीवास्तव नें स्वावलंबन ट्रस्ट के कार्यकलापों की विस्तृत जानकारी दी, हाल में हुए लक्ष्मीबाई ब्रिगेड के बारे में कई बातें साझा की।

उन्होने बताया कि इस करोना  काल में जब आम लोग घर से निकलने से डरते है, वे किस तरह अपनी समाजिक सेवा से जुड़ी  गतिविधिया चला रही है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रतिष्ठित विदुषी डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार’ ने की।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर संस्था के संगठन मंत्री विनय खरे एवं अनंत श्रीवास्तव भी उपस्थित रहे। दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ममता सोनी, वरिष्ठ कवयित्री डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार’,  सुरेखा शर्मा, शकुन्तला मित्तल, सुषमा भंडारी, डॉ मुक्ता, स्मिता मिश्रा के साथ ही अन्य होनहार कवित्रियों में रचना निर्मल, निवेदिता सिन्हा, श्रुतिकृति अग्रवाल, लता सिन्हा, चंचल ढींगरा, स्वीटी सिंघल, शालिनी तनेजा, जूली सहाय, दर्शनी प्रिया, विभा वर्मा आदि की गरिमामय उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। कार्यक्रम का सुचारू संचालन भावना सक्सैना और परिणीता सिन्हा ने किया।

मुख्य अतिथि बालाजी इंस्टीट्यूट फरीदाबाद के निदेशक व ग्रीन इंडिया फाउन्डेशन के अध्यक्ष जगदीश चौधरी ने काव्य के विभिन्न तत्वों को रेखांकित करते हुए की कोरोनाकाल की विषम परिस्थिति की यह देन है कि मनुष्य एक दूसरे के निकट आ गया है।

उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है और आज की गोष्ठी इसी को परिलक्षित करती है। रचनाकार की रचनाएँ जब बोलती हैं, वह दूसरे को छूती हैं, किंतु वही रचनाएँ हमें छूती हैं जो गहन मंथन से निकल कर आती हैं। हजारों अनुभवों को मथकर ही सार्थक रचना की प्राप्ति होती है। रचना सार्वभौमिक होगी तो निश्चित ही हर किसी तक पहुँचेगी।

अध्यक्ष डॉ दुर्गा सिन्हा उदार बहुत मनोयोग से सभी की रचनाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए सभी के काव्य-पाठ की सराहना की और हृदयतल से आभार प्रकट करते हुए स्वावलंबन शब्दसार परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना की। कार्यक्रम के अंत में श्रीमती मेघना  श्रीवास्तव नें सभी प्रबुद्धजनों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

कलमकारों द्वारा प्रस्तुत रचनाओं से कुछ अंश-

देश वो है जो तुझको मुझको  एक पहचान दिलाता है।
आपतकाल में परदेशों से घर अपने ले आता है।
शालिनी तनेजा

आम आदमी ही तो देश का भाग्य-निर्माता है।
चुनता है प्रतिनिधि, सरकार बनाता और गिराता है।
स्वीटी सिंघल ‘सखी’

मेरे वतन, मेरे चमन, कैसे करूँ तुम्हे नमन।
आदर्श है धुल गये , फिर भी  श्वेत है हर वसन।
परिणीता सिन्हा

गीत देश  गाते आए गीत देश का गाएंगे।
सुषमा भंडारी

हम से ही है बना देश यह  हम ही हिन्दुस्तान हैं
देश का बच्चा -बच्चा अपने देश पे ही क़ुर्बान है
डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार‘

जिंदगी की हर नियामत छोड़ कर वतन चुना,
नमन-नमन उस वीर को जिसने मातृभारती हर जतन चुना।
श्रुतकीर्ति अग्रवाल

जनों की लाशों पर वो ताल ठोक अड़ देता पांव
राजनीति के बड़े अखाड़े अजब गजब से देखे दांव
लता सिन्हा ज्योतिर्मय

हुई धरा हैरान व्योम बना विरान
अब हर मोड़ पर यहाँ बिकता है इंसान
निवेदिता सिन्हा

सब बलिदान करें स्वार्थ का, देशहित में हम सारे
नहीं तिरंगा झुकने देंगे,तीन रंग हमको प्यारे।
शकुंतला मित्तल

औरों की उंगलियों को बचाती,
हर चुभन सहज ही झेल जाती
हर स्त्री होती है एक पिन-कुशन,
जिंदगियों को खुशनुमा बनाती
भावना सक्सैना

माँ भारती तुझे हम ऐसी बहार देंगे
अपने लहू से तेरा दामन निखार देंगे
मेघना श्रीवास्तव

आँखो को बंद करने से सूरज का क्या गया
यारा अँधेरा रूह पर तेरी ही छा गया
रचना निर्मल

फर्श पर पड़ी कराहती माँ
अश्रु धारा अविरल बहाती रही माँ
सुरेखा शर्मा

कुछ बोलना तो चाहती थी चुप्पियां मगरज़ रफ्तार इतनी तेज थी हम सुन नहीं सके
दर्शनी प्रिया

मैं तो हूँ एक आम स्त्री,
जो जन्म देना चाहती हूँ, एक भगत सिंह को
जूली सहाय

कब हुआ, कैसे हुआ,
बिन स्तंभों के कोई भवन खड़ा
चंचल ढींगरा