पहचान के अपनी ताकत, उठ अब आई तेरी बारी है, स्वावलंबन ट्रस्ट की ऑनलाइन गोष्टी आयोजित

शक्ति की उपासना के दिनों में गत रविवार 18 अक्तूबर को स्वावलंबन ट्रस्ट के साहित्यिक प्रकोष्ठ, स्वावलंबन शब्द-सार के तत्वावधान में महिला-सशक्तीकरण विषय पर ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर काव्य विभूतियों द्वारा ओजस्वी, अनुपम, मार्मिक और समाज को आइना दिखाने वाले काव्य पाठ ने मंत्र मुग्ध कर दिया।
गोष्ठी का शुभारम्भ स्वावलंबन शब्द-सार की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती परिणीता सिन्हा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

हरियाणा प्रांत संयोजिका श्रीमती कमल धमीजा ने माँ शारदे का वंदन-गान किया। राष्ट्रीय सह-संयोजिका भावना सक्सैना ने स्वागत संबोधन करते हुए कहा कि स्त्री अशक्त नहीं है, किंतु फिर भी मौजूदा परिस्थितियों में सशक्तीकरण की पुकार समय की मांग है। कवि व लेखक का दायित्व सिर्फ समाज की विद्रूपताओं का चित्रण करना भर नहीं है, अपितु रास्ता सुझाना भी है और समाज को सजग करना भी है।

इस अवसर पर संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव के साथ मुख्य अतिथि के रूप में डॉ मुक्ता उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के महामंत्री राघवेंद्र मिश्रा ने की और संस्था के संगठन मंत्री विनय खरे भी उपस्थित रहे।

दिल्ली प्रदेश अध्यक्षा ममता सोनी,  वरिष्ठ कवयित्री डॉ दुर्गा सिन्हा उदार,  शकुंतला मित्तल, डॉ अशोक ज्योति, शशिकांत श्रीवास्तव, सुषमा भंडारी के साथ ही अन्य होनहार कवित्रियों में मोना सहाय, प्रज्ञा मिश्रा, सीमा सिंह, निवेदिता सिन्हा, श्रुतिकृति अग्रवाल, चंचल ढींगरा, अभिलाषा विनय, शालिनी तनेजा आदि की गरिमामय उपस्थिति ने कार्यक्रम को भव्यता प्रदान की। कार्यक्रम का सुचारू संचालन कवयित्री स्वीटी सिंघल और रचना निर्मल ने किया।

गोष्ठी के अंत में राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा ने श्रीमती स्वीटी सिंघल को कर्नाटक में शब्द-सार संयोजिका तथा श्रीमती सीमा सिंह को उत्तर प्रदेश की संयोजिका और श्रीमती मोना सहाय को उत्तर-प्रदेश में महासचिव पद के लिए मनोनीत किया, जिसका अनुमोदन राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव ने किया।
अध्यक्षीय संबोधन में राघवेंद्र मिश्रा ने सभी के काव्य-पाठ की सराहना की और हृदयतल से आभार प्रकट करते हुए स्वावलंबन शब्दसार परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना की।

कलमकारों ने नारी की शक्ति और उसकी पीड़ा को बखूबी उकेरा, जिनमे से कुछ अंश यूँ हैं –

तू नारी है! तू शक्ति है!
धैर्यशील बन, मर्यादा रख
पर समाज संकीर्ण बने तो
तो तू दुर्गा, चंडी, काली बन
शालिनी तनेजा

आज फिर देखे मैंने उसके ज़ख्म
आज फिर खून में मेरे उबाल आया
मोना सहाय

किसी रोज़
दुनिया की सब औरतें
एकजुट हो अगर
बांध लेंगी अपनी कोख
तो सिमट कर
मिट जाएगा संसार
भावना सक्सैना

उसके गाल पर सूखा आँसू
बेबस आँखों की मजबूरी
जीवन कितना सस्ता उसका
भूखा पेट हर चाह अधूरी
श्रुतिकृति अग्रवाल

मैं औरत हूँ, इंसान भी हूँ
बस जिस्म नहीं हूँ, जान भी हूँ
स्वीटी सिंघल

मैं नारी हूं! कमजोर नहीं हूं, बोझ नहीं हूं,
शर्म नहीं हूं, रात नहीं हूं, नाही हूं  मै अंधियारा
मैं जन्मदायिनी, शक्तिस्वरूपा, जगदम्बा, जगजननी हूं
प्रज्ञा मिश्रा

बदल रहा है अपना भारत,
आओ हम स्वीकार करें
दिल से अपनाएँ निज संस्कृति,
जीवन का उद्धार करें
रह ‘उदार’ मानवतावादी
सर्व धर्म अपनाएँ हम
हिन्दी जन-जन तक पहुँचाएँ,
हिन्दी से ही प्यार करें।।
डॉ दुर्गा सिन्हा ‘उदार’

यहाँ मानवता की बलि देख
यह मन मेरा धिक्कार उठा
अब गरज उठी यह लेखनी भी
हाय कैसा है हाहाकार उठा
लता सिन्हा ज्योतिर्मय

नारी ने नर को जन्म दिया,
फिर भी क्यों इनसे हारी है?
शक्ति स्वरूप को भूली,
क्यों बनी आज बेचारी है?
अबला ये नहीं, है सबला,
देवी, दुर्गा अवतारी  है
पहचान के अपनी ताकत उठ,
अब आई तेरी बारी है।
शकुन्तला मित्तल

परीक्षा से
डरना मेरी फितरत नहीं
मैं स्त्री हूँ
मेरा तो जीवन ही परीक्षा है
रचना निर्मल

माँ ने कहा था
प्यास ही जीवन है
या कहूँ तो जीवन ही प्यास है
जीवन को
बनाए रखने के लिए जीवंत
प्यास को
बनाए रखना अनंत
विष्णु सक्सेना

बुला रही है मंजिलें इसे न तू बरबाद कर
यह जिंदगी नवरंग है, बस सोचकर इकरार कर
कमल धमीजा

जाने कितनी बार कोख में तूने मुझको मारा है  मैं हूं रचयिता सृष्टि की और ये जग मुझसे हारा है
सुषमा भंडारी

नारी तू ही है नारायणी
और तू ही है शक्ति स्वरूपा
जीती है तू दो -दो रूपों को
लेकर जन्म नारी रूप में
इस पावन वसुधा पर
शशिकांत श्रीवास्तव

आज की सीता नहीं भटकेगी
धोबी की बातों से
मूकता नहीं प्रश्न करेगी तुमसे हर पल,
नहीं मंजूर उसे जलना तिल तिल।
परिणीता सिन्हा

मैं समय की रेख पर तुमको बुलाना चाहती हूँ,
साक्ष्य में प्राची कणों का अर्घ्य पाना चाहती हूँ।  अभिलाषा विनय

अवनी से नहीं होता कभी
अम्बर का मिलन!
पर दोनों विस्तृत दोनों अनंत
जूली

मां यशोदा स्त्री सम्मान की लोरी सुनाओ ना
मां अपने लाडले को समझाओ ना
सीमा सिंह

आज की नारी खुद की पहचान बना रही
अब न वो धरती में समाएगी
निवेदिता सिन्हा

कहो न सखी
नयनों मे अश्रु
मुस्कराहट चेहरे पर
सफर कहाँ का
तय कर रही हो आजकल
चंचल ढींगरा