भारत में महिलाओं की व्यथा और समाज का नजरिया: सिमरन शर्मा

महिला सशक्तिकरण के विषय में पढ़ते-पढ़ते जिज्ञासा इतनी बढ़ गई कि गूगल, विकिपीडिया व कुछ प्रसिद्ध लेखकों के लेखों को खंगालते हुए भारत में महिलाओं की स्थिति के विषय में जो भी तथ्यात्मक व धरणीय विचार, जिनसे में सहमत हूँ उन्हें यहाँ साझा कर रही हूँ।

भारत की इसी सभ्यता, संस्कृति, विविधता व सम्पन्नता की ओर आकर्षित होने वाले गोरे (रंगभेद के जन्मदाता) हमेशा से आरोप लगाते रहे कि भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति प्रारंभ से ही दयनीय रही है।

इन्ही आरोपों में सती प्रथा, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी कई कुरीतियों को बताया गया। आपको क्या लगता है ये सभी कुप्रथायें भारतीय समाज के मूल में निहित रही होंगी? चलिए बात यदि प्रारंभ की है तो प्रारंभ से ही प्रारंभ करते हैं।

बात करते हैं हमारे सम्मानीय ग्रंथ रामायण व महाभारत की, दोनों महाग्रंथों में एक स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए कौरवों व रावण का समूल विनाश किया गया। जिससे सिद्ध होता है कि उस समय स्त्री को देवी रूप मानकर उसके सम्मान को सबसे ऊपर रखा गया।

वहीं लोपमुद्रा ने अपनी मर्जी से अगस्त्य ऋषि से विवाह किया। क्या इसमें आपको महिलाओं की स्थिति दयनीय लगती है?हो सकता है कुछ लोगों को यह धार्मिक, अतार्किक या असंगत लगे या कई लोग मेरे विचारों से सहमत न हो।

तो आगे चलते हैं, बात करते हैं वैदिक काल की, जिसमे आप पायेगें कि उस समय की स्त्री शिक्षित थी, उसे सामाजिक, धार्मिक उत्सवों, यज्ञ, सभा, समिति, गोष्टि में बिना किसी प्रतिबंध के भाग लेने का अधिकार था। पाणिनि ने भी उस समय की स्त्री को अध्यापिका होने का उल्लेख किया है। उस समय स्त्री को प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, स्वयंवर, उपनयन संस्कार का अधिकार था।

हाँ, उत्तरवैदिक काल आते आते कुछ अतिबुद्धिजीवी वर्ग विकसित हुआ, जिसने महिलाओं के अधिकारों को अल्प किया, किन्तु सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा तो तब भी नही थी। जब आप इतिहास का विश्लेषण करेंगे तब ज्ञात होगा कि मुगल शासन और अंग्रेजो के शासन काल में ही महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हुई।

अंग्रेजों ने उस समय महिलाओं का शोषण किया। ब्रिटिश शासन में बलात्कार की घटनाएं प्रारम्भ हुई, जो भारत में पहले कभी नही हुई। जिस कारण माता पिता अपनी पुत्री का विवाह कम उम्र में करने लगे, जिसे बाल विवाह कहा गया। पति की मृत्युपरांत उसकी पत्नी को अंग्रेज बलपूर्वक उठा कर ले जाते थे, जिस कारण सती प्रथा का जन्म हुआ और इसी प्रकार अन्य कुप्रथाओं ने जन्म लिया।

दहेज प्रथा का बात करें तो प्राचीन समय में पिता की संपत्ति पर बेटियों का भी बराबर अधिकार हुआ करता था, जिसे पिता उसके विवाह के समय धनराशि के रूप में दिया करता था। अंग्रेजों में इसे दहेज प्रथा का नाम दिया जिस विचार को आज अधिनियम बनाकर लागू करने की जरूरत पड़ रही है, वह पहले से ही भारतीय समाज के मूल कर्तव्यों में निहित था।

आज भारत आजाद है, क्या आज भी स्त्रियों की स्थिति दयनीय है? नहीं। आज की स्त्री राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, वैज्ञानिक, खिलाड़ी, कृषक, शिक्षक, उद्यमी, डॉक्टर, सिंगर, एक्टर, पेंटर सब कुछ है। हर क्षेत्र में पुरुष के बराबर है। ब्रिटिश शासन के पूर्व और बाद में महिलाओं की स्थिति अत्यंत सुदृढ़ थी और है।

अंग्रेजों ने पुरजोर कोशिश की, भारतीय समाज का दुष्प्रचार कर हमारी सभ्यता व संस्कृति को ध्वस्त करने की। लेकिन भगत सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, ज्योतिवा फुले, सरोजिनी नायडू, भीकाजी कामा, सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू जैसे अनेक देशभक्तों ने राष्ट्र की गरिमा, संप्रभुता, सम्मान, शान व गौरव को आंच भी नही आने दी। यहां स्वतंत्रता संग्राम में भी महिलाओं की भागीदारी यह स्पष्ट करती है कि भारतीय महिला कभी अबला नही रही।

यह देश नारी को देवी रूप में सदैव पूजता आया है। कुछ अपवाद है जो समय समय पर इसे चोट पहुँचाते हैं, वे संभवतः रावण या कौरवों के ही वंशज या उनके अनुयायी होंगे। किंतु इतिहास गवाह है जब भी नारी के सम्मान को आघात पहुंचा है युग ही बदल गया है। प्रत्येक पुरुष का फर्ज है, मौलिक कर्तव्य है कि वह नारी का सम्मान करें व उसके सम्मान की रक्षा करें।

सिमरन शर्मा
अशोकनगर