Daily Archives: Feb 22, 2020
आत्महत्या- हंसा श्रीवास्तव
जीवन खों इतनो छोटो कर दओ
पल ने लगो खोवै् में
माता पिता ने अपनो जीवन
जाखों दओ बनावै में
कैसी सोच हो गई रे मानस
जो तन मिलतो...
झरते पत्तों की वेदना- डॉ मीरा रामनिवास
डाल से विछुड़ कर, पत्ता बहुत रोया था
उसने अपना घर और ठिकाना खोया था
शाख पर लगे पत्ते, उसके अपने ही थे
शाख पर बैठे पंछी,...
स्वर्ण कण- पूनम शर्मा
एक दिन
मैंने एक
महल बनाया
रेत पर
रेत का महल
बसेरा नहीं बनता
और मैंने
अंजलि भर रेत
समेट ली अपनी
स्मृति पटल पर
यथार्थ के थपेड़ों ने
अंजलि की पकड़
ढ़ीली कर दी
रेत झड़ने...
फूल सरसों के झरे क्यों- रकमिश सुल्तानपुरी
बादलों ने
नभ, निलय में इन्द्रधनुषी
रँग भरे क्यों?
सह थपेड़े
मौसमों के, फूल सरसों
के झरे क्यों?
आह में
तप सतपथों पर तीव्रगति से
तू चला चल
दुखभरी
इक रात भी तो मनुज...
रखना है विश्वास सँजोकर- डॉ उमेश कुमार राठी
रखना है विश्वास सँजोकर सबको एक खिवैया में
वो ही पंख लगा देता है हर मानव की नैया में
रक्त शिराओं में भर देती दूध पिलाती...
बादल- नवरंग भारती
आई सावन की परी झूम के आये बादल
दिल के मारों में मची धूम के हाय बादल
उसके चेहरे पे निगाहों का ठहरना मुश्किल
उसकी ज़ुल्फों की...
कोशी का उदास किनारा- राजीव कुमार झा
कोशी का उदास रेत भरा किनारा
गुजरता दूर कोई
ग्रीष्म में
यहाँ सूरज भी रहा हारा
धान-गेहूँ, मूँग के खेत
आम, अमरूद, कटहल के पेड़ पर चढ़ी
फूलों से सजी...