Daily Archives: Feb 24, 2020
दर्द सारी रात जागा- रकमिश सुल्तानपुरी
सो गई
भूखी थकाने
दर्द सारी रात जागा
खेत खलिहानों से
लौटी
कँपकपाती बदनसीबी
छप्परों में
जा सिसकती
ओढ़ रजनी को गरीबी
भूख ले
आयी कटोरे
में भरे पर्याप्त आंसू
मौन चुप्पी
तोड़ता है
ले नया करवट अभागा
छोड़...
जब मुझे पुकारा- राजीव कुमार झा
कोलाहल से भरे नगर में
यह पुलकित मन क्यों खूब अकेला
संग तुम्हारे सागर तट पर
अरुणिम संध्या की आहत वेला
फिर चली गयी हो
कहाँ छोड़कर देख रहे
सारे...
सारी उम्र तेरे लिए- मनोज कुमार
मैं गुजरा न जिस मोड़ पर
उसके छोर पर तुम इंतेजार करते रहे
राह भटका मैं सारी उम्र तेरे लिए
तुम इंतेज़ार किसका करते रहे
किस मुँह से...
शज़र भी नहीं है- डॉ उमेश कुमार राठी
बसर हो सके वो शिखर भी नहीं है
डगर में पखेरू शज़र भी नहीं है
दिवाकर विभा राशि लगती मनोहर
सहर से सलौना पहर भी नहीं है
सदा...
उसे फांसी दो- राजन गुप्ता जिगर
तुम नहीं अकेली आज बे-आबरू हुई
क्या यहां मानवता आज बेजार नहीं,
जिसकी अस्मत लुटी सरेआम आज
क्या वह इंसाफ की हकदार नहीं
फांसी दो, उसे फांसी दो
चीरहरण...