Monthly Archives: February, 2020
कामवाली बाई- सुरेश प्रसाद श्रीवास्तव
देखा आज सुबह
नीचे आंगन में बुदबुदाते,
शायद सुनी होगी
कड़वी बातों भरी डपट
न आने या देर से आने पर।
धरा धराया रह जाता
किया कराया बीते कई वर्षों...
नदी हूँ मैं- गायत्री
नदी हूँ मैं
जो लौटती नहीं
कभी पीछे
हवा हूँ मैं
जो
बँधती नहीं
कभी किसी से
झुमाती-झकझोरती
सहलाती
यादों वाली
बारिश हूँ
मैं
सुबह-सुबह की
अलसाई हुई
धूप हूँ
मैं
फसलों पर बिखरी
सुनहरी आभा वाली
दमकती साँझ हूँ
मैं
बेसबब उड़ते-फिरते
पीले पत्तों...
डॉ आरती कुमारी की दो कविता
डॉ आरती कुमारीमुज़फ़्फ़रपुर, बिहार
जीवन परिचयनाम- डॉ आरती कुमारीपिता का नाम- अलख निरंजन प्रसाद सिन्हामाता का नाम- स्वर्गीय श्रीमती रीता सिन्हापति का नाम- माधवेन्द्र प्रसादवर्तमान/स्थायी...
बताओ तो भला आख़िर- शुचि भवि
लिया है आपने क्यों बेसबब बिन काम का पैसा
हराम आमेज़ हो जायेगा ये आराम का पैसा
जो सड़ता है यहाँ बैंकों में मुर्दा लाश की...
कोशिशें कमाल करती हैं- सुनील माहेश्वरी
यारो कोशिशें भी कमाल करती हैं
यूं ही नहीं मिल जाती मंज़िल
सिर्फ एक पल भर सोचने से
इंसान की कोशिशें भी कमाल करती हैं
यूं ही नहीं...
बेटी- राजेन्द्र प्रसाद
जाना था जिसको अभी, पढ़ने को स्कूल
उड़ा रही है गेह की, बेटी देखो धूल
जब घर में होती कभी, उसकी माँ बीमार
चूल्हे चौके का सभी,...
ख़ामोशियों ने ख़त लिखा- रकमिश सुल्तानपुरी
देख दिल पर ज़ख्म गहरा हसरतों ने ख़त लिखा
आज फिर मुझको मेरी तन्हाइयों ने ख़त लिखा
उम्र गुज़री तड़पती यूँ करवटों में रात भर
दर्द से...
यादें- राजीव कुमार
तुम संगीत हो
यौवन की झंकार
मौसम ने पहना
धूप का हार
तुमने देखा इसी राह में
कोई गीत सुनायी देता
संध्या का स्वर
कहाँ सिमटता
बेहद सुंदर यादें
वे दिन बने वसंत...
दर्द सारी रात जागा- रकमिश सुल्तानपुरी
सो गई
भूखी थकाने
दर्द सारी रात जागा
खेत खलिहानों से
लौटी
कँपकपाती बदनसीबी
छप्परों में
जा सिसकती
ओढ़ रजनी को गरीबी
भूख ले
आयी कटोरे
में भरे पर्याप्त आंसू
मौन चुप्पी
तोड़ता है
ले नया करवट अभागा
छोड़...
जब मुझे पुकारा- राजीव कुमार झा
कोलाहल से भरे नगर में
यह पुलकित मन क्यों खूब अकेला
संग तुम्हारे सागर तट पर
अरुणिम संध्या की आहत वेला
फिर चली गयी हो
कहाँ छोड़कर देख रहे
सारे...
सारी उम्र तेरे लिए- मनोज कुमार
मैं गुजरा न जिस मोड़ पर
उसके छोर पर तुम इंतेजार करते रहे
राह भटका मैं सारी उम्र तेरे लिए
तुम इंतेज़ार किसका करते रहे
किस मुँह से...
शज़र भी नहीं है- डॉ उमेश कुमार राठी
बसर हो सके वो शिखर भी नहीं है
डगर में पखेरू शज़र भी नहीं है
दिवाकर विभा राशि लगती मनोहर
सहर से सलौना पहर भी नहीं है
सदा...