Tuesday, October 22, 2024

Monthly Archives: February, 2020

उसे फांसी दो- राजन गुप्ता जिगर

तुम नहीं अकेली आज बे-आबरू हुई क्या यहां मानवता आज बेजार नहीं, जिसकी अस्मत लुटी सरेआम आज क्या वह इंसाफ की हकदार नहीं फांसी दो, उसे फांसी दो चीरहरण...

आज के साहित्य को पढ़ने में बौद्धिक संतुष्टि नहीं मिलती- कथाकार-कवयित्री विनीता राहुरीकर से राजीव कुमार झा की बातचीत

प्रश्न- लेखन की शुरुवात कब से हुई? विनीता राहुरीकर- तारीख तो याद नहीं कि कब पहली रचना लिखी लेकिन इतना याद है कि तब माँ-पिताजी...

अब मेरे दिल को- रकमिश सुल्तानपुरी

अब मेरे दिल को गुलज़ार सही रहने दो जब तुमको प्यार है तो प्यार सही रहने दो आओ क़रीब ज़रा बाहों में, क्या रख्खा दुनिया में, छोड़ो,...

इंतज़ार- पूनम शर्मा

मैं क्यों तुम्हारा इंतज़ार करूँ? मेरा साथी तो मेरा पदचाप है जो कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ता और तुम भी तो एकाकार हो जाते हो मेरा पीछा करते करते ताकि ढूंढ सको मुझे कि मैं कहाँ-कहाँ भटक रही हूँ तुम कब से तलाश...

मधुमयी चाँदनी- डॉ उमेश कुमार राठी

शोखियों में घुली मधुमयी चाँदनी प्रीत पाकर छिड़ी सुरमयी रागिनी खनखनाती रहीं चूड़ियाँ रात भर प्यार की हर अदा हो गयी जामुनी रात रानी महकने लगी आजकल दीप दिल...

मेरी ही रहना तुम- मनोज कुमार

चल रही है ये हवा या तुम मचल रही हो बिजलियों की कौंध है या तुम मन में गरज़ रही हो चाहती हो बरसना मुझ पर या मन ही...

यह चेहरा- राजीव कुमार झा

यह चेहरा कितना जाना पहचाना रोज आईने में इसी भाव को लेकर आना सबके मन का सच्चा भाव किसी का धन बन जाता किसी विरह का गीत सदा वह चुपचुप आकर...

आत्महत्या- हंसा श्रीवास्तव

जीवन खों इतनो छोटो कर दओ पल ने लगो खोवै् में माता पिता ने अपनो जीवन जाखों दओ बनावै में कैसी सोच हो गई रे मानस जो तन मिलतो...

झरते पत्तों की वेदना- डॉ मीरा रामनिवास

डाल से विछुड़ कर, पत्ता बहुत रोया था उसने अपना घर और ठिकाना खोया था शाख पर लगे पत्ते, उसके अपने ही थे शाख पर बैठे पंछी,...

स्वर्ण कण- पूनम शर्मा

एक दिन मैंने एक महल बनाया रेत पर रेत का महल बसेरा नहीं बनता और मैंने अंजलि भर रेत समेट ली अपनी स्मृति पटल पर यथार्थ के थपेड़ों ने अंजलि की पकड़ ढ़ीली कर दी रेत झड़ने...

फूल सरसों के झरे क्यों- रकमिश सुल्तानपुरी

बादलों ने नभ, निलय में इन्द्रधनुषी रँग भरे क्यों? सह थपेड़े मौसमों के, फूल सरसों के झरे क्यों? आह में तप सतपथों पर तीव्रगति से तू चला चल दुखभरी इक रात भी तो मनुज...

रखना है विश्वास सँजोकर- डॉ उमेश कुमार राठी

रखना है विश्वास सँजोकर सबको एक खिवैया में वो ही पंख लगा देता है हर मानव की नैया में रक्त शिराओं में भर देती दूध पिलाती...

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