Tuesday, October 22, 2024

Daily Archives: Mar 1, 2020

एनएसजी कमांडो भारत के नागरिकों के लिए सुरक्षा की भावना का पर्याय बन चुके हैं- गृह मंत्री

कोलकाता में आज राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के रीजनल हब के परिसर के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह...

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में प्रतिष्ठित महिलाओं के नाम पर 11 चेयर्स की घोषणा

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर कल सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में युवा महिलाओं को प्रोत्‍साहन, महिला सशक्तिकरण और युवा महिला अनुसंधानकर्ताओं को उचित...

माँ- नरेश शांडिल्य

मंदिर की देहरी भजन गाती मंडली दाना चुगती चिड़िया तुलसी का बिरवा पीपल का पेड़ छड़ी वॉकर अस्पताल का स्ट्रेचर... जब-जब भी दिखते हैं याद आने लगती है- माँ... सब छोड़ गई माँ- अपना हॉल सा...

तुम- प्रीति असीम शर्मा

सारी कायनात, तुम में सिमट जाती है। मैं आसमां देखता हूँ मुझे तू नजर आती है। सारी कायनात, तुम नजर आती है। वैसाख के खेतों की, रंगत में, तेरा चेहरा पाता हूँ तेरी...

समाधि- डॉ सुषमा गजापुरे

अकेली मैं कहाँ रहती हूँ अकेली? जब सोचती हूँ तुम्हें, तुम्हारे स्पर्श का अहसास, वो बोलती आँखों की चमक, सरल दृष्टि के पीछे से झाँकती निरागस प्रेम की याचना, तुम्हारी नेह-ताप...

ज़िन्दगी के खेल- अनिता कुमारी

खेल-खेल में ज़िन्दगी, कुछ ऐसे खेल, खेल गई। अरमानों के बेशकीमती मोती, कच्चे धागे में पिरो गई।। चन्द कदमों के राह तले, मन के, मनके बिखर गए। धागे की हकिकत...

तुम्हारे सहारे- रुपाली दळवी

तुम्हारा हाथ, हाथों में हो तो दुनिया की हर मुश्किल से लड़ पाएंगे छुट भी जाए सारा जहाँ तो कोई गम नहीं बस साथ हो तुम्हारा हर कठिनाई...

मन पतंग- सुमन ढींगरा दुग्गल

उड़ जाने दो मन पतंग को दूर कहीं नील गगन की ओर भावों की डोर मे बंधकर करने दो स्वच्छंद अठखेलियाँ इस जीवन की सुलझी हैं...

रूप का जादू- राजीव कुमार

तुम मुग्ध हो किस भाव में यह रूप का जादू किसको दिखाया पास आकर आज सूरज झांकता जिस पहर में दोपहर को तुम मुसकुराती राह में बारिश में संध्या का मन...

इश्क़ वालों को- रकमिश सुल्तानपुरी

इश्क़ वालों को मिला है ये फ़ना होने का हक़ यूँ सभी को तो नहीं है बेवफ़ा होने का हक़ प्यार कर फिर बेवफ़ा होने की...

अब मेरी माँ नहीं होती- मनोज कुमार

रोज निकलता हूँ जिंदगी को मिट्टी से मिलाने में खुशियां छोड़ अपनी सबकी तलासने में लौट आता हूँ तमस की बांह खुलने पर पसीने में तर बतर...

नदी- वीरेन्द्र तोमर

नदी, सागर से रूठ गयी बोली तू तो स्वार्थी है देश से पानी ढ़ो-ढ़ो कर मैं तेरा आँचल भरती हूँ कब मेरा कर्ज ऊतारेगा बस इतनी आशा करती हूँ मैं...

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