Tuesday, October 22, 2024

Daily Archives: Mar 8, 2020

प्रीत बावरी- राजश्री

भोली-सी ये प्रीत बावरी, मन मेरा भरमाती है। पी’ आयेंगे, चुपके-चुपके, कानों में कह जाती है। स्वप्निल नैना द्वार निहारें, मुख पर लाली छाती है। हवा प्रेम के नये नये-से किस्से...

हरा गुलाबी नीला पीला- वीरेन्द्र तोमर

हरा गुलाबी नीला पीला रंगो ने कर दिया गीला फूलों से बनाये सारे रंग खेले राधिका कृष्णा संग सबसे गहरा प्यार का रंग मस्ती होवे भांग के संग आयी गर्मी,...

गंगा- वीरेन्द्र तोमर

हिम है उद्गम, बनकर कर प्रपात मैं गंगा बनकर आई हूँ टेढ़े-मेढ़े रस्ते चल कर, मैं देवलोक से आई हूँ अति निर्मल-शीतल-तरल, स्वच्छ जल लाई हूँ औषधियों का भँडार समेटे, सोना-हीरा,...

महिला दिवस विशेष: नारी को अधिकार- वीरेन्द्र तोमर

देश के सारे बैंक मिल जायें सभी कर्मचारी मूल घर को लौटें घर पर रह शाखा को खोलें सभी गाँव के होयें मूल निवासी चल-अचल का ब्यौरा लेकर सभी...

महिला दिवस विशेष: जननी है वह- रकमिश सुल्तानपुरी

जननी है वह भार नहीं है महिला है लाचार नहीं है माता बेटी बहन बिना यह जंगल है, संसार नहीं है महिलाओं से जीत तुम्हारी इनसे तेरी हार नहीं...

महिला दिवस विशेष: लिखो मेरी कहानी- अंजना वर्मा

लिख सकते हो तो लिखो मेरी कहानी पर नहीं लिख पाओगे क्योंकि मैं जिंदगी हूँ जिसे परिभाषित न कर पाया कोई यद्यपि जीते हैं सब सह सकते हो तो सहकर देखो...

एक गुलाब- राजीव कुमार

कहाँ खिला सुंदर एक गुलाब सबके पास कहाँ बचा वह भाव जिसे हम प्यार अगन वन का कहते यह कोई नगर कल से सूना किस कोलाहल के पास ठहरकर यह...

रंग लगा दूँ मैं- तालिब मंसूरी

इजाज़त तेरी गर मिले तो होली पे रंग लगा दूँ मैं शायद इसी बहाने ही फिर गालों को सहला दूँ मैं काश कि फिर से लौट...

रंग से परहेज़ कैसा- रकमिश सुल्तानपुरी

आजकल है खुब चलन में झूठ का ये क्रेज़ कैसा? रंग सच का हो अगर तो रंग से परहेज़ कैसा? धर्म की पिचकारियों में द्वेष का भर रंग ताने। जाति की लेकर अबीरें छेड़ते कौमी...

जीत लें दिल- राम सेवक वर्मा

वक्त की ये ज़रूरत मेरे साथियों, चल सके न कोई बहाना है। जिन्दगी भर जिसे तुम छुटा न सको, रंग ऐसा हमें अब लगाना है। घोंटकर भाँग रख...

रंगों वाली खुशिया आयी- मनोज कुमार

गुनगुनाहट सी धूप छाई, अंगों में मस्ती भर आईं, आम के मौर भर आये, कोयल ने खड़ी शोर मचाई, लगता है रंगों वाली खुशियां आयी, आयी आयी रे होली...

फागुन में लग गई लगन- अशोक मिश्र

फागुन में लग गई लगन मौसम के हाथ हुए पीले। बालियाँ जवान हो गईंं, रात-रात देखतीं सपन, अंग-अंग उम्र का नशा, पोर-पोर चंपई छुवन। कान तक खिंचें हैं काम-बान, फूलों के...

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